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सोमवार, 3 अक्टूबर 2022

निर्गुण में विवेक- विचार

🌸🌸 ।श्री हरिः। 🌸🌸

निर्गुण में विवेक- विचार मुख्य है । सगुणमें श्रद्धा - विश्वास मुख्य है । ज्ञान का पंथ कठिन है, पर भक्ति का पंथ सुगम है । निर्गुण का रूप सुलभ है , पर सगुण का रूप कठिन है । इसलिये गोस्वामी जी महाराज ने कहा है -

निर्गुन रूप सुलभ अति सगुन जान नहिं कोई ।
(मानस , उत्तर ० ७३ ख)

ग्यान पंथ कृपान कै धारा ।
(मानस, उत्तर ०१.९९.१) 

कहहु भगति पथ कवन प्रयासा। (मानस, उत्तर ० ४६।१) 

तर्क निर्गुण में चलता है , सगुण में नहीं । विश्वास में कमी होने से ही भक्ति में कठिनता आती है । निर्गुण का स्वरूप है सत्तामात्र , होनापन । 

मेरे विचार में कोई भी मार्ग कठिन नहीं है । अपनी रुचि, विश्वास और योग्यता होनी चाहिये । मैं न रूप को कठिन मानता हूँ, न मार्ग को कठिन मानता हूँ । आत्मा शुद्ध, बुद्ध, मुक्त है, अकर्ता है— ये कोरी बातें हैं । ये शास्त्र की बातें हैं, साधन की नहीं । बातों से कुछ होने वाला नहीं है, कोरा अभिमान होगा।

विहित भोग भी बाधक है, फिर निषिद्ध भोग तो बहुत ही बाधक है । अतः ज्ञान या भक्ति जो भी चाहते हो, पाप करना छोड़ दो । उसमें भी सुगम बात यह है कि जिसको पाप जानते हो, वह छोड़ दो । सबसे पहले निषिद्ध कर्मों का त्याग करो।

मदिरापान का पाप ब्रह्महत्या से भी तेज है ! मदिरापान में हत्या नहीं दीखती, पर वह धर्म , आस्तिक भाव के अंकुरों को जला देता है।

🙏🏻नारायण नारायण नारायण🙏🏻

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