भ्रम १. - करवाचौथ व्रत का विधान सनातन धर्म में नहीं है।
उच्छेद - ऐसा नहीं है करवाचौथ शास्त्र (व्रतराज) में करकचतुर्थी व्रत के रुप में कहा है उसका विधान भी वहां देखा जा सकता है।
भ्रम २. - इसे कन्या अथवा जिसका वरण किया जा चुका है ऐसी कन्या भी कर सकतीं है।
उच्छेद - यह भी अनुचित है इसका अधिकार मात्र सौभाग्यवती स्त्रियों को ही है।
भ्रम ३. - रात्रि में छननी से चन्द्र और पति को देखना चाहिए और एक दूसरे को जल आदि पिलाना चाहिए।
उच्छेद - छननी से देखने का विधान शास्त्र में नहीं है न ही जल आदि पिलाने का मात्र चन्द्रपूजन कर अर्घ्यादि देना ही विहित हुआ है।
भ्रम ४. - यदि किसी कारणवश बीच में एक बार व्रत छूट जाऐ तो व्रतभंग होता है, फिर से उसे विधानपूर्वक करना होता है।
उच्छेद - यदि अपरिहार्य कारण से छूट जाऐ तो पुन: पूर्ववत् विधि से व्रत करें।
भ्रम ५. - इस व्रत का उद्यापन नहीं होता।
उच्छेद - ऐसा नहीं है,उद्यापन भी किया जा सकता है।
प्रश्न. - मासिक धर्म और अशौचादि में यह व्रत नहीं करना चाहिए?
उत्तर - मासिक धर्म में पति द्वारा व्रत करवाऐं, दोनों के अशौच में होने पर किसी ब्राह्मण से करवाऐं।
प्रश्न - इसका क्या विधान है?
उत्तर - चन्द्रोदय व्यापिनी कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को श्रद्धा पूर्वक व्रत करें, वस्त्र पर वटवृक्ष को चित्रित कर भगवान् शिव, गौरी गणेश कार्तिक की पूजा करें, व्रतकथा का श्रवण करें, रात्रि में चन्द्रोदय होने पर चन्द्र की पूजा कर अर्घ्य दें पति की पूजा करके भोजन ग्रहण करें।
द्वारा- पं. यज्ञदत्त
नारायण! नारायण!! नारायण!!!🙏🏻
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