कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 11 अक्टूबर 2022

भगवान् की मूर्ति में दृढ़ भगवद् बुद्ध!


मध्यप्रदेश के एक गांव में चतुर्भुज भगवान का मंदिर है। वहां पूर्ण शौचाचार पूर्वक भगवान की सेवा पूजा होती है। 

उस मंदिर के पुजारी की वृद्धा माताजी जो सेवा पूजा में सहयोगिनी थी , एक बार अंधेरे में गिर गई और उनका कमर का कूल्हा टूट गया ।

उन्हें ठाकुर जी की सेवा न कर पाने का बड़ा क्लेश रहता था और वे उन्हें कठोर शब्दों में उलाहना देती रहती थी। 

एक दिन वे वृद्ध माताजी अत्यंत सबेरे - सबेरे घसीटते हुई किसी तरह मंदिर तक पहुंच गई, गर्भ गृह का ताला खोला और अंदर से बंद कर दिया।

 इधर उनके पुत्र पुजारी जी जब नित्य की तरह मंदिर पहुंचे तो गर्भ गृह को अंदर से बंद देख कर चोरी आदि की आशंका करने लगे। 

 दरवाजा पीटने पर अंदर से वृद्धा माताजी ने पुकार कर कहा- ठहरो खोलती हूं और ऐसा कहकर वे सामान्य स्वस्थ रूप से चलकर दरवाजे तक आई और दरवाजा खोल दिया ।

उन्हें टूटे कूल्हे की पीड़ा से मुक्त देखकर सब आश्चर्य चकित थे। 

पूछने पर उन्होंने अपनी सहज ग्रामीण भाषा में बताया कि मैं आज चतुर्भुज भगवान से लड़ाई करने आई कि इन्होंने मेरा कूल्हा क्यों तोड़ दिया ?

मैंने इनको कह दिया कि इसे ठीक कर दो , नहीं तो मैं तुम्हारा कूल्हा तोड़ दूंगी। 

मैंने चंदन वाला चकला उठाया भी था, तभी उन्होंने मेरी कमर पर हाथ फेर कर कूल्हा जोड़ दिया। मैं चंगी हो गई।

इस प्रसंग के संबंध में पूछने पर भक्तमालीजी महाराज ने बताया कि हम लोग प्राय भगवान की मूर्ति में पाषाण अथवा काष्ठ बुद्धि नहीं छोड़ पाते। 

उस वृद्धा माताजी की उस मूर्ति में दृढ भगवत् बुद्धि थी , इसलिए यह साक्षात्- कृपा परिणाम हुआ।

नारायण! नारायण!! नारायण!!!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें