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बुधवार, 28 दिसंबर 2022

ब्रह्म मुहूर्त में उठने की परंपरा क्यों…!?

ब्रह्म मुहूर्त:-
रात्रि के अंतिम प्रहर को ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं। हमारे ऋषि मुनियों ने इस मुहूर्त का विशेष महत्व बताया है। उनके अनुसार यह समय निद्रा त्याग के लिए सर्वोत्तम है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने से सौंदर्य, बल, विद्या, बुद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। सूर्योदय से चार घड़ी (लगभग डेढ़ घण्टे) पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में ही जग जाना चाहिये। इस समय सोना शास्त्र निषिद्ध है।


ब्रह्म का मतलब परम तत्व या परमात्मा। मुहूर्त यानी अनुकूल समय। रात्रि का अंतिम प्रहर अर्थात प्रात: ०४ से ०५.३० बजे का समय ब्रह्म मुहूर्त कहा गया है।


“ब्रह्ममुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी”।
(ब्रह्ममुहूर्त की निद्रा पुण्य का नाश करने वाली होती है।)



सिख धर्म में इस समय के लिए बेहद सुन्दर नाम है:-"अमृत वेला", जिसके द्वारा इस समय का महत्व स्वयं ही साबित हो जाता है। ईश्वर भक्ति के लिए यह महत्व स्वयं ही साबित हो जाता है। ईवर भक्ति के लिए यह सर्वश्रेष्ठ समय है। इस समय उठने से मनुष्य को सौंदर्य, लक्ष्मी, बुद्धि, स्वास्थ्य आदि की प्राप्ति होती है। उसका मन शांत और तन पवित्र होता है।


ब्रह्म मुहूर्त में उठना हमारे जीवन के लिए बहुत लाभकारी है। इससे हमारा शरीर स्वस्थ होता है और दिनभर स्फूर्ति बनी रहती है। स्वस्थ रहने और सफल होने का यह ऐसा फार्मूला है जिसमें खर्च कुछ नहीं होता। केवल आलस्य छोड़ने की जरूरत है।



पौराणिक महत्व :-
वाल्मीकि रामायण के मुताबिक माता सीता को ढूंढते हुए श्रीहनुमान ब्रह्ममुहूर्त में ही अशोक वाटिका पहुंचे। जहां उन्होंने वेद व यज्ञ के ज्ञाताओं के मंत्र उच्चारण की आवाज सुनी।



शास्त्रों में भी इसका उल्लेख है-

वर्णं कीर्तिं मतिं लक्ष्मीं स्वास्थ्यमायुश्च विदन्ति।
ब्राह्मे मुहूर्ते संजाग्रच्छि वा पंकज यथा॥

अर्थात:- ब्रह्म मुहूर्त में उठने से व्यक्ति को सुंदरता, लक्ष्मी, बुद्धि, स्वास्थ्य, आयु आदि की प्राप्ति होती है। ऐसा करने से शरीर कमल की तरह सुंदर हो जाता हे।



ब्रह्म मुहूर्त और प्रकृति :-
ब्रह्म मुहूर्त और प्रकृति का गहरा नाता है। इस समय में पशु-पक्षी जाग जाते हैं। उनका मधुर कलरव शुरू हो जाता है। कमल का फूल भी खिल उठता है। मुर्गे बांग देने लगते हैं। एक तरह से प्रकृति भी ब्रह्म मुहूर्त में चैतन्य हो जाती है। यह प्रतीक है उठने, जागने का। प्रकृति हमें संदेश देती है ब्रह्म मुहूर्त में उठने के लिए।



इसलिए मिलती है सफलता व समृद्धि :-
आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में उठकर टहलने से शरीर में संजीवनी शक्ति का संचार होता है। यही कारण है कि इस समय बहने वाली वायु को अमृततुल्य कहा गया है। इसके अलावा यह समय अध्ययन के लिए भी सर्वोत्तम बताया गया है क्योंकि रात को आराम करने के बाद सुबह जब हम उठते हैं तो शरीर तथा मस्तिष्क में भी स्फूर्ति व ताजगी बनी रहती है। प्रमुख मंदिरों के पट भी ब्रह्म मुहूर्त में खोल दिए जाते हैं तथा भगवान का श्रृंगार व पूजन भी ब्रह्म मुहूर्त में किए जाने का विधान है।


ब्रह्ममुहूर्त के धार्मिक, पौराणिक व व्यावहारिक पहलुओं और लाभ को जानकर हर रोज इस शुभ घड़ी में जागना शुरू करें तो बेहतर नतीजे मिलेंगे।


ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाला व्यक्ति सफल, सुखी और समृद्ध होता है, क्यों? क्योंकि जल्दी उठने से दिनभर के कार्यों और योजनाओं को बनाने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। इसलिए न केवल जीवन सफल होता है। शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने वाला हर व्यक्ति सुखी और समृद्ध हो सकता है। कारण वह जो काम करता है उसमें उसकी प्रगति होती है। विद्यार्थी परीक्षा में सफल रहता है। जॉब (नौकरी) करने वाले से बॉस खुश रहता है। 


बिजनेसमैन अच्छी कमाई कर सकता है। बीमार आदमी की आय तो प्रभावित होती ही है, उल्टे खर्च बढऩे लगता है। सफलता उसी के कदम चूमती है जो समय का सदुपयोग करे और स्वस्थ रहे। अत: स्वस्थ और सफल रहना है तो ब्रह्म मुहूर्त में उठें।


वेदों में भी ब्रह्म मुहूर्त में उठने का महत्व और उससे होने वाले लाभ का उल्लेख किया गया है।

प्रातारत्नं प्रातरिष्वा दधाति तं चिकित्वा प्रतिगृह्यनिधत्तो।
तेन प्रजां वर्धयमान आयू रायस्पोषेण सचेत सुवीर:॥ :- ऋग्वेद


अर्थात:- सुबह सूर्य उदय होने से पहले उठने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। इसीलिए बुद्धिमान लोग इस समय को व्यर्थ नहीं गंवाते। सुबह जल्दी उठने वाला व्यक्ति स्वस्थ, सुखी, ताकतवाला और दीर्घायु होता है।



यद्य सूर उदितोऽनागा मित्रोऽर्यमा। सुवाति सविता भग:॥ :- सामदेव

अर्थात:- व्यक्ति को सुबह सूर्योदय से पहले शौच व स्नान कर लेना चाहिए। इसके बाद भगवान की पूजा-अर्चना करना चाहिए। इस समय की शुद्ध व निर्मल हवा से स्वास्थ्य और संपत्ति की वृद्धि होती है।



उद्यन्त्सूर्यं इव सुप्तानां द्विषतां वर्च आदद

अर्थात:- सूरज उगने के बाद भी जो नहीं उठते या जागते उनका तेज खत्म हो जाता है।



व्यावहारिक महत्व:-
व्यावहारिक रूप से अच्छी सेहत, ताजगी और ऊर्जा पाने के लिए ब्रह्ममुहूर्त बेहतर समय है। क्योंकि रात की नींद के बाद पिछले दिन की शारीरिक और मानसिक थकान उतर जाने पर दिमाग शांत और स्थिर रहता है। वातावरण और हवा भी स्वच्छ होती है। ऐसे में देव उपासना, ध्यान, योग, पूजा तन, मन और बुद्धि को पुष्ट करते हैं।



जैविक घड़ी पर आधारित शरीर की दिनचर्या:-
प्रातः ०३ से ०५ – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से फेफड़ों में होती है। थोड़ा गुनगुना पानी पीकर खुली हवा में घूमना एवं प्राणायाम करना । इस समय दीर्घ श्वसन करने से फेफड़ों की कार्यक्षमता खूब विकसित होती है। उन्हें शुद्ध वायु (आक्सीजन) और ऋण आयन विपुल मात्रा में मिलने से शरीर स्वस्थ व स्फूर्तिमान होता है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाले लोग बुद्धिमान व उत्साही होते है, और सोते रहने वालों का जीवन निस्तेज हो जाता है ।

नारायण! नारायण!! नारायण!!! 🙏🏻

सोमवार, 19 दिसंबर 2022

क्या ब्रह्मास्त्र से भी घातक है महाविध्वंसक सुदर्शन चक्र…!?

🛕 ॐ नमो भगवते वासुदेवाय!🛕
हिंदू धर्म के सभी देवी देवताओं ने कोई न कोई अस्त्र और शस्त्र धारण किया हुआ है जिसमें जगत के पालनहार भगवान श्री हरि विष्णु सुदर्शन चक्र धारण करते हैं मान्यता है कि ये चक्र बेहद शक्तिशाली और महाविध्वंसक अस्त्र है यह भगवान ब्रह्मा के ब्रह्मास्त्र से भी अधिक ताकतवार है भगवान श्री हरि विष्णु और उनके अवतार श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कई बड़े बड़े राक्षसों का वध किया था तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा भगवान श्री हरि विष्णु के इसी महाविध्वंसक अस्त्र के बारे में बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।

शास्त्र अनुसार सभी महाअस्त्रों में से सिर्फ सुदर्शन चक्र ही ऐसा है जो लगातार गतिशील रहता है सुदर्शन चक्र के निर्माण को लेकर यह कहा जाता है कि महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन ने खांडव वन को जलाने में अग्नि देवता की सहायता की थी बदले में उन्होंने श्री कृष्ण को एक चक्र और एक कौमोदकी गदा भेंद की थी एक प्रचलित कथा यह भी है कि परशुराम ने भगवान श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र दिया था।

वही सुदर्शन चक्र की खासियत यह है कि इसे दुश्मन पर फेंका नहीं जाता है यह मन की गति से चलता है और शत्रु का विनाश करके फिर वापस लौट आता है ऐसा माना जाता है कि इस चक्र से बचने के लिए पूरी धरती पर कोई जगह नहीं है वही पुराणों और धार्मिक ग्रंथों की मानें तो यह एक सेकंड में लाखों बार घूमता है।

इसका वजन 2200 किलो माना जाता है। आपको बता दें कि सुदर्शन चक्र एक गोलाकार अस्त्र है जो आकार में लगभग 12-30 सेंटीमीटर व्यास का है इस चक्र में दो पंक्तियों में लाखों कीलें विपरीत दिशाओं में चलती हैं जो इसे एक दांतेदार किनारा देती है ऐसा कहा जाता है कि यह अस्त्र ब्रह्मास्त्र से भी कई गुना अधिक शक्तिशाली अस्त्र है।
🙏🏻🚩 जय श्री हरि।🚩🙏🏻

रविवार, 23 अक्टूबर 2022

दिवाली की रात, यहां "दीपक" अवश्य लगाएं!

🍁🍁  नारायण 🍁🍁


१. पीपल के पेड़ के नीचे दीपावली की रात एक दीपक लगाकर घर लौट आएं। दीपक लगाने के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए। ऐसा करने पर आपकी धन से जुड़ी समस्याएं दूर हो सकती हैं।



२.बिल्ववृक्ष के नीचे भी दीपावली की शाम दीपक लगाएं। बिल्ववृक्ष भगवान शिव का प्रिय है। अत: यहां दीपक लगाने पर उनकी कृपा प्राप्त होती है।



३.घर के आसपास जो भी मंदिर हो वहां रात के समय दीपक अवश्य लगाएं। इससे सभी देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है।



४.घर के पास कोई नदी या तालाब हो तो वहा पर भी रात के समय दीपक अवश्य लगाएं। इससे दोषो से मुक्ति मिलती है ! 



५.घर के आसपास वाले चौराहों पर रात के समय दीपक लगाना चाहिए। ऐसा करने से भी पैसों से जुड़ी समस्याएं समाप्त हो सकती हैं।




६.तुलसी जी और शालिग्राम के पास रात के समय दीपक अवश्य लगाएं। ऐसा करने पर महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।



७. घर के पूजन स्थल में दीपक लगाएं, जो पूरी रात बुझना नहीं चाहिए। ऐसा करने पर महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।




८.घर के आंगन में भी दीपक लगाना चाहिए। ध्यान रखें यह दीपक भी रातभर बुझना नहीं चाहिए।




९.धन प्राप्ति की कामना वाले व्यक्ति को दीपावली की रात मुख्य दरवाजे की चौखट के दोनों ओर दीपक अवश्य लगाना चाहिए।
 



१०.पितरों का दीपक, गया तीर्थ के नाम से घर के दक्षिण दिशा में लगाये, इस से पितृदोष से मुक्ति मिलती है।


नारायण! नारायण!! नारायण!!!

गुरुवार, 13 अक्टूबर 2022

करकचतुर्थी (करवाचौथ) व्रत पर भ्रम निवारण…!!


भ्रम १. - करवाचौथ व्रत का विधान सनातन धर्म में नहीं है।

उच्छेद - ऐसा नहीं है करवाचौथ शास्त्र (व्रतराज) में करकचतुर्थी व्रत के रुप में कहा है उसका विधान भी वहां देखा जा सकता है।

भ्रम २. - इसे कन्या अथवा जिसका वरण किया जा चुका है ऐसी कन्या भी कर सकतीं है।

उच्छेद - यह भी अनुचित है इसका अधिकार मात्र सौभाग्यवती स्त्रियों को ही है।

भ्रम ३. - रात्रि में छननी से चन्द्र और पति को देखना चाहिए और एक दूसरे को जल आदि पिलाना चाहिए।

उच्छेद - छननी से देखने का विधान शास्त्र में नहीं है न ही जल आदि पिलाने का मात्र चन्द्रपूजन कर अर्घ्यादि देना ही विहित हुआ है।

भ्रम ४. - यदि किसी कारणवश बीच में एक बार व्रत छूट जाऐ तो व्रतभंग होता है, फिर से उसे विधानपूर्वक करना होता है।

उच्छेद - यदि अपरिहार्य कारण से छूट जाऐ तो पुन: पूर्ववत् विधि से व्रत करें।

भ्रम ५. - इस व्रत का उद्यापन नहीं होता।

उच्छेद - ऐसा नहीं है,उद्यापन भी किया जा सकता है।

प्रश्न. - मासिक धर्म और अशौचादि में यह व्रत नहीं करना चाहिए?

उत्तर - मासिक धर्म में पति द्वारा व्रत करवाऐं, दोनों के अशौच में होने पर किसी ब्राह्मण से करवाऐं।

प्रश्न - इसका क्या विधान है?

उत्तर - चन्द्रोदय व्यापिनी कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को श्रद्धा पूर्वक व्रत करें, वस्त्र पर वटवृक्ष को चित्रित कर भगवान् शिव, गौरी गणेश कार्तिक की पूजा करें, व्रतकथा का श्रवण करें, रात्रि में चन्द्रोदय होने पर चन्द्र की पूजा कर अर्घ्य दें पति की पूजा करके भोजन ग्रहण करें। 

द्वारा- पं. यज्ञदत्त
नारायण! नारायण!! नारायण!!!🙏🏻

मंगलवार, 11 अक्टूबर 2022

पत्नी "वामांगी" क्यों कहलाती है…!?


शास्त्रों में पत्नी को वामांगी कहा गया है , जिसका अर्थ होता है बायें अंग की अधिकारी। 


इसीलिये पुरुष के शरीर का बायां हिस्सा स्त्री का माना जाता है। 


इसका कारण यह है कि भगवान शिव के बायें अंग से स्त्री की उत्पत्ति हुई है जिसका प्रतीक है उनका "अर्धनारीश्वर रूप"। 


यही कारण है कि हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार पुरुष के दायें हाथ से पुरुष की और बायें हाथ से स्त्री की स्थिति देखने की बात कही गयी है।


स्त्री पुरुष की वामांगी होती है , अतः सोते समय और सभा में, सिंदूरदान, आशीर्वाद ग्रहण करते समय और भोजन के समय स्त्री पति के बायीं तरफ रहने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। 


जो कर्म संसारिक होते हैं उसमें पत्नी पति के बायीं ओर बैठती है क्योंकि यह कर्म स्त्री प्रधान कर्म माने जाते हैं।


वामांगी होने पर भी शास्त्रोक्त कथन है कि कुछ कार्यों में स्त्री को दायीं तरफ रहना चाहिये , जैसे कन्यादान, विवाह, यज्ञकर्म, जातकर्म, नामकरण और अन्न प्राशन के समय पत्नी को पति के दायीं तरफ बैठना चाहिये क्योंकि यह सभी कार्य पारलौकिक माने जाते हैं और इन्हें पुरुष प्रधान माना गया है। 

इसलिए इन कर्मों में पत्नी के दायीं तरफ बैठने के नियम हैं।

वामांगी के अतिरिक्त पत्नी को पति की अर्द्धांगिनी भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है पत्नी, पति के शरीर का आधा अंग होती है। 


दोनों शब्दों का सार एक ही है जिसके अनुसार पत्नी के बिना पति अधूरा है। 

पत्नी ही पति के जीवन को पूर्ण करती है, उसे खुशहाली प्रदान करती है, उसके परिवार का ख्याल रखती है, और उसे सभी सुख प्रदान करती है।

"सा भार्या या गृहे दक्षा सा भार्या या प्रियंवदा ।
सा भाार्यायां पतिप्राणा सा भार्यायां पतिव्रता" ।।

नारायण! नारायण!! नारायण!!!🙏🏻

भगवान् की मूर्ति में दृढ़ भगवद् बुद्ध!


मध्यप्रदेश के एक गांव में चतुर्भुज भगवान का मंदिर है। वहां पूर्ण शौचाचार पूर्वक भगवान की सेवा पूजा होती है। 

उस मंदिर के पुजारी की वृद्धा माताजी जो सेवा पूजा में सहयोगिनी थी , एक बार अंधेरे में गिर गई और उनका कमर का कूल्हा टूट गया ।

उन्हें ठाकुर जी की सेवा न कर पाने का बड़ा क्लेश रहता था और वे उन्हें कठोर शब्दों में उलाहना देती रहती थी। 

एक दिन वे वृद्ध माताजी अत्यंत सबेरे - सबेरे घसीटते हुई किसी तरह मंदिर तक पहुंच गई, गर्भ गृह का ताला खोला और अंदर से बंद कर दिया।

 इधर उनके पुत्र पुजारी जी जब नित्य की तरह मंदिर पहुंचे तो गर्भ गृह को अंदर से बंद देख कर चोरी आदि की आशंका करने लगे। 

 दरवाजा पीटने पर अंदर से वृद्धा माताजी ने पुकार कर कहा- ठहरो खोलती हूं और ऐसा कहकर वे सामान्य स्वस्थ रूप से चलकर दरवाजे तक आई और दरवाजा खोल दिया ।

उन्हें टूटे कूल्हे की पीड़ा से मुक्त देखकर सब आश्चर्य चकित थे। 

पूछने पर उन्होंने अपनी सहज ग्रामीण भाषा में बताया कि मैं आज चतुर्भुज भगवान से लड़ाई करने आई कि इन्होंने मेरा कूल्हा क्यों तोड़ दिया ?

मैंने इनको कह दिया कि इसे ठीक कर दो , नहीं तो मैं तुम्हारा कूल्हा तोड़ दूंगी। 

मैंने चंदन वाला चकला उठाया भी था, तभी उन्होंने मेरी कमर पर हाथ फेर कर कूल्हा जोड़ दिया। मैं चंगी हो गई।

इस प्रसंग के संबंध में पूछने पर भक्तमालीजी महाराज ने बताया कि हम लोग प्राय भगवान की मूर्ति में पाषाण अथवा काष्ठ बुद्धि नहीं छोड़ पाते। 

उस वृद्धा माताजी की उस मूर्ति में दृढ भगवत् बुद्धि थी , इसलिए यह साक्षात्- कृपा परिणाम हुआ।

नारायण! नारायण!! नारायण!!!

रविवार, 9 अक्टूबर 2022

आरती का अर्थ।



‘आरती’ शब्द संस्कृत के ‘आर्तिका’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है अरिष्ट, विपत्ति, आपत्ति, कष्ट, क्लेश। भगवान की आरती को ‘नीराजन’ भी कहते हैं। 
नीराजन का अर्थ है- ‘विशेष रूप से प्रकाशित करना’।

आरती के इन्हीं दो अर्थों के आधार पर भगवान की आरती करने के दो कारण (भाव) बतलाये गये हैं:—

१. प्रथम भाव है:— आरती या नीराजन में दीपक की लौ को देवता के समस्त अंग-प्रत्यंग में बार-बार इस प्रकार घुमाया जाता है कि भक्तगण आरती के प्रकाश में भगवान के चमकते हुए आभूषण और श्री अंग की कान्ति की जगमगाहट का दर्शन करके आनन्दित हो सके और उस छवि को अच्छी तरह निहार कर हृदय में स्थित कर सकें, इसीलिए आरती को नीराजन कहते हैं क्योंकि इसमें भगवान की छवि को दीपक की लौ से विशेष रूप से प्रकाशित किया जाता है।

२. दूसरे भाव के अनुसार आरती के द्वारा साधक अपने आराध्य के अरिष्टों को दीपक की लौ से विनष्ट कर देता है। 

भगवान की रूप माधुरी अप्रतिम होती है । जब भक्त उन्हें एकटक निहारता है तो उन्हें नजर भी लग जाती है। आरती के दीपक की लौ से भगवान के समस्त अरिष्टों को दूर करने का प्रयास किया जाता है।

भगवान की आरती होने के बाद भक्तगण जो दोनों हाथों से आरती लेते हैं उसके भी दो भाव हैं:—

पहला:— जिस दीपक की लौ ने हमें अपने आराध्य के नख-शिख के इतने सुन्दर दर्शन कराये उसकी हम बलैया लेते हैं, सिर पर धारण करते हैं।

दूसरा:— जिस दीपक की बाती ने भगवान के अरिष्ट हरे हैं, जलाए हैं, उसे हम हमने मस्तक पर धारण करते हैं ।

कैसे करें भगवान की सच्ची आरती ?

यह संसार पंच महाभूतों:—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है । आरती में ये पांच वस्तुएं (पंच महाभूत) रहते है:—

पृथ्वी की सुगंध:— कपूर
जल की मधुर धारा:— घी
अग्नि:— दीपक की लौ
वायु:— लौ का हिलना
आकाश:— घण्टा, घण्टी, शंख, मृदंग आदि की ध्वनि।
इस प्रकार सम्पूर्ण संसार से ही भगवान की आरती होती है।
मानव शरीर भी पंचमहाभूतों से बना है।
मनुष्य अपने शरीर से भी ईश्वर की आरती कर सकता है, लेकिन कैसे?

अपने देह का दीपक, जीवन का घी, प्राण की बाती, और आत्मा की लौ सजाकर भगवान के इशारे पर नाचना:—यही आरती है। 

इस तरह की सच्ची आरती करने पर संसार का बंधन छूट जाता है और जीव को भगवान के दर्शन होने लगते हैं ।

आरती करने की विधि :—

● एक थाली में स्वस्तिक का चिह्न बनाएं और पुष्प व अक्षत के आसन पर एक दीपक में घी की बाती और कपूर रखकर प्रज्ज्वलित करें। 

प्रार्थना करें—‘हे गोविन्द ! आपकी प्रसन्नता के लिए मैंने रत्नमय दीयट में कपूर और घी में डुबोई हुई बाती जलाई है जो मेरे जीवन के सारे अंधकार दूर कर दें।’

फिर एक ही स्थान पर खड़े होकर भगवान की आरती करें।

● भगवान की आरती उतारते समय चार बार चरणों में, दो बार नाभि पर, एक बार मुखमण्डल पर व सात बार सभी अंगों पर घुमाने का विधान है। 

इसके बाद शंख में जल लेकर भगवान के चारों ओर घुमाकर अपने ऊपर तथा भक्तजनों पर जल छोड़ दें। फिर मन से ही ठाकुरजी को साष्टांग प्रणाम करें। इस तरह भगवान की आरती उतारने का विधान है।

● घर में एक या दो बाती की ही आरती करनी चाहिए। जबकि मन्दिरों में ५, ७, ११ या २१ बतियों से आरती की जाती है।

● भगवान की शुद्ध घी में डुबोई बाती से आरती करनी चाहिए।

● पूजन चाहे छोटा (पंचोपचार) हो या बड़ा (षोडशोपचार), बिना आरती के पूर्ण नहीं माना जाता है।

भगवान की आरती करने व देखने का महत्व

●जिस प्रकार आरती के दीपक की बाती ऊपर की ओर रहती है उसी प्रकार आरती देखने, करने व लेने से मनुष्य आध्यात्मिक दृष्टि से उच्चता प्राप्त करता है।

●जो भगवान विष्णु की आरती को नित्य देखता है या करता है, वह सात जन्म तक उच्च कुल में जन्म लेकर अंत में मोक्ष पाता है।

●कपूर से भगवान की आरती करने पर अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है साथ ही मनुष्य के कुल का उद्धार हो जाता है और अंत में साधक भगवान अनंत में ही मिल जाता है।

●घी की बाती से जो मनुष्य भगवान की आरती उतारता है वह बहुत समय तक स्वर्गलोक में निवास करता है। 
नारायण! नारायण!! नारायण!!!🙏🏻

गुरुवार, 6 अक्टूबर 2022

हिंदू धर्म में बताई गई आश्रम प्रणाली का अर्थ !


‘हिन्दू धर्म में ‘वर्णाश्रम’, अर्थात वर्ण तथा आश्रम यह जीवनपद्धति बताई गई है । उनमें से वर्ण अर्थात जाति नहीं, अपितु साधना का मार्ग । 

आश्रम चार हैं :-

१. ब्रह्मचर्याश्रम, 

२. गृहस्थाश्रम, 

३. वाणप्रस्थाश्रम तथा 

४. सन्यासाश्रम।


जिनके अर्थ क्रमशः इस प्रकार हैं :-

१. ब्रह्मचर्यपालन, 

२. गृहस्थजीवन का पालन, 

३. गृहस्थाश्रम का त्याग कर मुनि वृत्ति से वन में रहना तथा 

४. सन्यास जीवन का पालन।

इन चारों शब्दों के साथ ‘आश्रम’ शब्द जोडने का महत्त्व यह है कि ‘जीवन के चारों चरणों में आश्रमवासी की भांति जीवन जिएं’, इसका स्मरण कराना।'

बुधवार, 5 अक्टूबर 2022

जामुन एक ऐसा वृक्ष जिसके अंग अंग में औषधि है।

🍇अगर जामुन की मोटी लकड़ी का टुकडा पानी की टंकी में रख दे तो टंकी में शैवाल, हरी काई नहीं जमेगी और पानी सड़ेगा भी नहीं। 

🍇जामुन की इस खुबी के कारण इसका इस्तेमाल नाव बनाने में बड़ा पैमाने पर होता है।

🍇पहले के जमाने में गांवो में जब कुंए की खुदाई होती तो उसके तलहटी में जामून की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है जिसे जमोट कहते है। 

🍇दिल्ली की निजामुद्दीन बावड़ी का हाल ही में हुए जीर्णोद्धार से ज्ञात हुआ 700 सालों के बाद भी गाद या अन्य अवरोधों की वजह से यहाँ जल के स्तोत्र बंद नहीं हुए हैं। 

🍇भारतीय पुरातत्व विभाग के प्रमुख के.एन. श्रीवास्तव के अनुसार इस बावड़ी की अनोखी बात यह है कि आज भी यहाँ लकड़ी की वो तख्ती साबुत है जिसके ऊपर यह बावड़ी बनी थी। श्रीवास्तव जी के अनुसार उत्तर भारत के अधिकतर कुँओं व बावड़ियों की तली में जामुन की लकड़ी का इस्तेमाल आधार के रूप में किया जाता था।

🍇स्वास्थ्य की दृष्टि से विटामिन सी और आयरन से भरपूर जामुन शरीर में न केवल हीमोग्लोबिन की मात्रा को बढ़ाता। पेट दर्द, डायबिटीज, गठिया, पेचिस, पाचन संबंधी कई अन्य समस्याओं को ठीक करने में अत्यंत उपयोगी है।

🍇एक रिसर्च के मुताबिक, जामुन के पत्तियों में एंटी डायबिटिक गुण पाए जाते हैं, जो रक्त शुगर को नियंत्रित करने करती है। ऐसे में जामुन की पत्तियों से तैयार चाय का सेवन करने से डायबिटीज के मरीजों को काफी लाभ मिलेगा।

🍇सबसे पहले आप एक कप पानी लें। अब इस पानी को तपेली में डालकर अच्छे से उबाल लें। इसके बाद इसमें जामुन की कुछ पत्तियों को धो कर डाल दें। अगर आपके पास जामुन की पत्तियों का पाउडर है, तो आप इस पाउडर को 1 चम्मच पानी में डालकर उबाल सकते हैं। जब पानी अच्छे से उबल जाए, तो इसे कप में छान लें। अब इसमें आप शहद या फिर नींबू के रस की कुछ बूंदे मिक्स करके पी सकते हैं। 

🍇जामुन की पत्तियों में एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं. इसका सेवन मसूड़ों से निकलने वाले खून को रोकने में और संक्रमण को फैलने से रोकता है। जामुन की पत्तियों को सुखाकर टूथ पाउडर के रूप में प्रयोग कर सकते हैं. इसमें एस्ट्रिंजेंट गुण होते हैं जो मुंह के छालों को ठीक करने में मदद करते हैं। मुंह के छालों में जामुन की छाल के काढ़ा का इस्तेमाल करने से फायदा मिलता है। जामुन में मौजूद आयरन खून को शुद्ध करने में मदद करता है।

🍇जामुन की लकड़ी न केवल एक अच्छी दातुन है अपितु पानी चखने वाले (जलसूंघा) भी पानी सूंघने के लिए जामुन की लकड़ी का इस्तेमाल करते। 

☘️एक कदम आयुर्वेद की ओर…☘️

सोमवार, 3 अक्टूबर 2022

निर्गुण में विवेक- विचार

🌸🌸 ।श्री हरिः। 🌸🌸

निर्गुण में विवेक- विचार मुख्य है । सगुणमें श्रद्धा - विश्वास मुख्य है । ज्ञान का पंथ कठिन है, पर भक्ति का पंथ सुगम है । निर्गुण का रूप सुलभ है , पर सगुण का रूप कठिन है । इसलिये गोस्वामी जी महाराज ने कहा है -

निर्गुन रूप सुलभ अति सगुन जान नहिं कोई ।
(मानस , उत्तर ० ७३ ख)

ग्यान पंथ कृपान कै धारा ।
(मानस, उत्तर ०१.९९.१) 

कहहु भगति पथ कवन प्रयासा। (मानस, उत्तर ० ४६।१) 

तर्क निर्गुण में चलता है , सगुण में नहीं । विश्वास में कमी होने से ही भक्ति में कठिनता आती है । निर्गुण का स्वरूप है सत्तामात्र , होनापन । 

मेरे विचार में कोई भी मार्ग कठिन नहीं है । अपनी रुचि, विश्वास और योग्यता होनी चाहिये । मैं न रूप को कठिन मानता हूँ, न मार्ग को कठिन मानता हूँ । आत्मा शुद्ध, बुद्ध, मुक्त है, अकर्ता है— ये कोरी बातें हैं । ये शास्त्र की बातें हैं, साधन की नहीं । बातों से कुछ होने वाला नहीं है, कोरा अभिमान होगा।

विहित भोग भी बाधक है, फिर निषिद्ध भोग तो बहुत ही बाधक है । अतः ज्ञान या भक्ति जो भी चाहते हो, पाप करना छोड़ दो । उसमें भी सुगम बात यह है कि जिसको पाप जानते हो, वह छोड़ दो । सबसे पहले निषिद्ध कर्मों का त्याग करो।

मदिरापान का पाप ब्रह्महत्या से भी तेज है ! मदिरापान में हत्या नहीं दीखती, पर वह धर्म , आस्तिक भाव के अंकुरों को जला देता है।

🙏🏻नारायण नारायण नारायण🙏🏻

शनिवार, 1 अक्टूबर 2022

भगवान के तीन सखा

🌸🌸 श्री हरि: 🌸🌸


रामायण में भगवान के तीन सखा है:- 
१. निषादराज गुह,
२. सुग्रीव और 
३. विभीषण। 

इनमें निषादराज सिध्द भक्त था। पूर्णता को प्राप्त-ऐसे सिध्द भक्त है। विभीषण साधक भक्त है,भगवत्प्राप्ति की साधना करने वाला है और सुग्रीव विषयी भक्त है, विपत्ती आने पर भक्ती करता है और जब दुःख मिटता है तो फिर जै रामजी की! भगवान कहते है- 'मैं सबको सखा बनाने के लिये तैयार हूँ।

नारायण! नारायण!! नारायण!!!🙏🏻

शुक्रवार, 6 मई 2022

मस्से वाली बवासीर का इलाज़!

पाँच से छः इंच मोटी बेरी की लकड़ी को जलाकर उसके कोयले से मस्से की सिकाई करें और बाद में नीला थोथा मस्से पर लगाएं, उसके बाद सरसों का तेल लगाते रहे, बवासीर जड़ से खत्म हो जाएगी।