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रविवार, 23 अक्टूबर 2022

दिवाली की रात, यहां "दीपक" अवश्य लगाएं!

🍁🍁  नारायण 🍁🍁


१. पीपल के पेड़ के नीचे दीपावली की रात एक दीपक लगाकर घर लौट आएं। दीपक लगाने के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए। ऐसा करने पर आपकी धन से जुड़ी समस्याएं दूर हो सकती हैं।



२.बिल्ववृक्ष के नीचे भी दीपावली की शाम दीपक लगाएं। बिल्ववृक्ष भगवान शिव का प्रिय है। अत: यहां दीपक लगाने पर उनकी कृपा प्राप्त होती है।



३.घर के आसपास जो भी मंदिर हो वहां रात के समय दीपक अवश्य लगाएं। इससे सभी देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है।



४.घर के पास कोई नदी या तालाब हो तो वहा पर भी रात के समय दीपक अवश्य लगाएं। इससे दोषो से मुक्ति मिलती है ! 



५.घर के आसपास वाले चौराहों पर रात के समय दीपक लगाना चाहिए। ऐसा करने से भी पैसों से जुड़ी समस्याएं समाप्त हो सकती हैं।




६.तुलसी जी और शालिग्राम के पास रात के समय दीपक अवश्य लगाएं। ऐसा करने पर महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।



७. घर के पूजन स्थल में दीपक लगाएं, जो पूरी रात बुझना नहीं चाहिए। ऐसा करने पर महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।




८.घर के आंगन में भी दीपक लगाना चाहिए। ध्यान रखें यह दीपक भी रातभर बुझना नहीं चाहिए।




९.धन प्राप्ति की कामना वाले व्यक्ति को दीपावली की रात मुख्य दरवाजे की चौखट के दोनों ओर दीपक अवश्य लगाना चाहिए।
 



१०.पितरों का दीपक, गया तीर्थ के नाम से घर के दक्षिण दिशा में लगाये, इस से पितृदोष से मुक्ति मिलती है।


नारायण! नारायण!! नारायण!!!

गुरुवार, 13 अक्टूबर 2022

करकचतुर्थी (करवाचौथ) व्रत पर भ्रम निवारण…!!


भ्रम १. - करवाचौथ व्रत का विधान सनातन धर्म में नहीं है।

उच्छेद - ऐसा नहीं है करवाचौथ शास्त्र (व्रतराज) में करकचतुर्थी व्रत के रुप में कहा है उसका विधान भी वहां देखा जा सकता है।

भ्रम २. - इसे कन्या अथवा जिसका वरण किया जा चुका है ऐसी कन्या भी कर सकतीं है।

उच्छेद - यह भी अनुचित है इसका अधिकार मात्र सौभाग्यवती स्त्रियों को ही है।

भ्रम ३. - रात्रि में छननी से चन्द्र और पति को देखना चाहिए और एक दूसरे को जल आदि पिलाना चाहिए।

उच्छेद - छननी से देखने का विधान शास्त्र में नहीं है न ही जल आदि पिलाने का मात्र चन्द्रपूजन कर अर्घ्यादि देना ही विहित हुआ है।

भ्रम ४. - यदि किसी कारणवश बीच में एक बार व्रत छूट जाऐ तो व्रतभंग होता है, फिर से उसे विधानपूर्वक करना होता है।

उच्छेद - यदि अपरिहार्य कारण से छूट जाऐ तो पुन: पूर्ववत् विधि से व्रत करें।

भ्रम ५. - इस व्रत का उद्यापन नहीं होता।

उच्छेद - ऐसा नहीं है,उद्यापन भी किया जा सकता है।

प्रश्न. - मासिक धर्म और अशौचादि में यह व्रत नहीं करना चाहिए?

उत्तर - मासिक धर्म में पति द्वारा व्रत करवाऐं, दोनों के अशौच में होने पर किसी ब्राह्मण से करवाऐं।

प्रश्न - इसका क्या विधान है?

उत्तर - चन्द्रोदय व्यापिनी कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को श्रद्धा पूर्वक व्रत करें, वस्त्र पर वटवृक्ष को चित्रित कर भगवान् शिव, गौरी गणेश कार्तिक की पूजा करें, व्रतकथा का श्रवण करें, रात्रि में चन्द्रोदय होने पर चन्द्र की पूजा कर अर्घ्य दें पति की पूजा करके भोजन ग्रहण करें। 

द्वारा- पं. यज्ञदत्त
नारायण! नारायण!! नारायण!!!🙏🏻

मंगलवार, 11 अक्टूबर 2022

पत्नी "वामांगी" क्यों कहलाती है…!?


शास्त्रों में पत्नी को वामांगी कहा गया है , जिसका अर्थ होता है बायें अंग की अधिकारी। 


इसीलिये पुरुष के शरीर का बायां हिस्सा स्त्री का माना जाता है। 


इसका कारण यह है कि भगवान शिव के बायें अंग से स्त्री की उत्पत्ति हुई है जिसका प्रतीक है उनका "अर्धनारीश्वर रूप"। 


यही कारण है कि हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार पुरुष के दायें हाथ से पुरुष की और बायें हाथ से स्त्री की स्थिति देखने की बात कही गयी है।


स्त्री पुरुष की वामांगी होती है , अतः सोते समय और सभा में, सिंदूरदान, आशीर्वाद ग्रहण करते समय और भोजन के समय स्त्री पति के बायीं तरफ रहने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। 


जो कर्म संसारिक होते हैं उसमें पत्नी पति के बायीं ओर बैठती है क्योंकि यह कर्म स्त्री प्रधान कर्म माने जाते हैं।


वामांगी होने पर भी शास्त्रोक्त कथन है कि कुछ कार्यों में स्त्री को दायीं तरफ रहना चाहिये , जैसे कन्यादान, विवाह, यज्ञकर्म, जातकर्म, नामकरण और अन्न प्राशन के समय पत्नी को पति के दायीं तरफ बैठना चाहिये क्योंकि यह सभी कार्य पारलौकिक माने जाते हैं और इन्हें पुरुष प्रधान माना गया है। 

इसलिए इन कर्मों में पत्नी के दायीं तरफ बैठने के नियम हैं।

वामांगी के अतिरिक्त पत्नी को पति की अर्द्धांगिनी भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है पत्नी, पति के शरीर का आधा अंग होती है। 


दोनों शब्दों का सार एक ही है जिसके अनुसार पत्नी के बिना पति अधूरा है। 

पत्नी ही पति के जीवन को पूर्ण करती है, उसे खुशहाली प्रदान करती है, उसके परिवार का ख्याल रखती है, और उसे सभी सुख प्रदान करती है।

"सा भार्या या गृहे दक्षा सा भार्या या प्रियंवदा ।
सा भाार्यायां पतिप्राणा सा भार्यायां पतिव्रता" ।।

नारायण! नारायण!! नारायण!!!🙏🏻

भगवान् की मूर्ति में दृढ़ भगवद् बुद्ध!


मध्यप्रदेश के एक गांव में चतुर्भुज भगवान का मंदिर है। वहां पूर्ण शौचाचार पूर्वक भगवान की सेवा पूजा होती है। 

उस मंदिर के पुजारी की वृद्धा माताजी जो सेवा पूजा में सहयोगिनी थी , एक बार अंधेरे में गिर गई और उनका कमर का कूल्हा टूट गया ।

उन्हें ठाकुर जी की सेवा न कर पाने का बड़ा क्लेश रहता था और वे उन्हें कठोर शब्दों में उलाहना देती रहती थी। 

एक दिन वे वृद्ध माताजी अत्यंत सबेरे - सबेरे घसीटते हुई किसी तरह मंदिर तक पहुंच गई, गर्भ गृह का ताला खोला और अंदर से बंद कर दिया।

 इधर उनके पुत्र पुजारी जी जब नित्य की तरह मंदिर पहुंचे तो गर्भ गृह को अंदर से बंद देख कर चोरी आदि की आशंका करने लगे। 

 दरवाजा पीटने पर अंदर से वृद्धा माताजी ने पुकार कर कहा- ठहरो खोलती हूं और ऐसा कहकर वे सामान्य स्वस्थ रूप से चलकर दरवाजे तक आई और दरवाजा खोल दिया ।

उन्हें टूटे कूल्हे की पीड़ा से मुक्त देखकर सब आश्चर्य चकित थे। 

पूछने पर उन्होंने अपनी सहज ग्रामीण भाषा में बताया कि मैं आज चतुर्भुज भगवान से लड़ाई करने आई कि इन्होंने मेरा कूल्हा क्यों तोड़ दिया ?

मैंने इनको कह दिया कि इसे ठीक कर दो , नहीं तो मैं तुम्हारा कूल्हा तोड़ दूंगी। 

मैंने चंदन वाला चकला उठाया भी था, तभी उन्होंने मेरी कमर पर हाथ फेर कर कूल्हा जोड़ दिया। मैं चंगी हो गई।

इस प्रसंग के संबंध में पूछने पर भक्तमालीजी महाराज ने बताया कि हम लोग प्राय भगवान की मूर्ति में पाषाण अथवा काष्ठ बुद्धि नहीं छोड़ पाते। 

उस वृद्धा माताजी की उस मूर्ति में दृढ भगवत् बुद्धि थी , इसलिए यह साक्षात्- कृपा परिणाम हुआ।

नारायण! नारायण!! नारायण!!!

रविवार, 9 अक्टूबर 2022

आरती का अर्थ।



‘आरती’ शब्द संस्कृत के ‘आर्तिका’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है अरिष्ट, विपत्ति, आपत्ति, कष्ट, क्लेश। भगवान की आरती को ‘नीराजन’ भी कहते हैं। 
नीराजन का अर्थ है- ‘विशेष रूप से प्रकाशित करना’।

आरती के इन्हीं दो अर्थों के आधार पर भगवान की आरती करने के दो कारण (भाव) बतलाये गये हैं:—

१. प्रथम भाव है:— आरती या नीराजन में दीपक की लौ को देवता के समस्त अंग-प्रत्यंग में बार-बार इस प्रकार घुमाया जाता है कि भक्तगण आरती के प्रकाश में भगवान के चमकते हुए आभूषण और श्री अंग की कान्ति की जगमगाहट का दर्शन करके आनन्दित हो सके और उस छवि को अच्छी तरह निहार कर हृदय में स्थित कर सकें, इसीलिए आरती को नीराजन कहते हैं क्योंकि इसमें भगवान की छवि को दीपक की लौ से विशेष रूप से प्रकाशित किया जाता है।

२. दूसरे भाव के अनुसार आरती के द्वारा साधक अपने आराध्य के अरिष्टों को दीपक की लौ से विनष्ट कर देता है। 

भगवान की रूप माधुरी अप्रतिम होती है । जब भक्त उन्हें एकटक निहारता है तो उन्हें नजर भी लग जाती है। आरती के दीपक की लौ से भगवान के समस्त अरिष्टों को दूर करने का प्रयास किया जाता है।

भगवान की आरती होने के बाद भक्तगण जो दोनों हाथों से आरती लेते हैं उसके भी दो भाव हैं:—

पहला:— जिस दीपक की लौ ने हमें अपने आराध्य के नख-शिख के इतने सुन्दर दर्शन कराये उसकी हम बलैया लेते हैं, सिर पर धारण करते हैं।

दूसरा:— जिस दीपक की बाती ने भगवान के अरिष्ट हरे हैं, जलाए हैं, उसे हम हमने मस्तक पर धारण करते हैं ।

कैसे करें भगवान की सच्ची आरती ?

यह संसार पंच महाभूतों:—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है । आरती में ये पांच वस्तुएं (पंच महाभूत) रहते है:—

पृथ्वी की सुगंध:— कपूर
जल की मधुर धारा:— घी
अग्नि:— दीपक की लौ
वायु:— लौ का हिलना
आकाश:— घण्टा, घण्टी, शंख, मृदंग आदि की ध्वनि।
इस प्रकार सम्पूर्ण संसार से ही भगवान की आरती होती है।
मानव शरीर भी पंचमहाभूतों से बना है।
मनुष्य अपने शरीर से भी ईश्वर की आरती कर सकता है, लेकिन कैसे?

अपने देह का दीपक, जीवन का घी, प्राण की बाती, और आत्मा की लौ सजाकर भगवान के इशारे पर नाचना:—यही आरती है। 

इस तरह की सच्ची आरती करने पर संसार का बंधन छूट जाता है और जीव को भगवान के दर्शन होने लगते हैं ।

आरती करने की विधि :—

● एक थाली में स्वस्तिक का चिह्न बनाएं और पुष्प व अक्षत के आसन पर एक दीपक में घी की बाती और कपूर रखकर प्रज्ज्वलित करें। 

प्रार्थना करें—‘हे गोविन्द ! आपकी प्रसन्नता के लिए मैंने रत्नमय दीयट में कपूर और घी में डुबोई हुई बाती जलाई है जो मेरे जीवन के सारे अंधकार दूर कर दें।’

फिर एक ही स्थान पर खड़े होकर भगवान की आरती करें।

● भगवान की आरती उतारते समय चार बार चरणों में, दो बार नाभि पर, एक बार मुखमण्डल पर व सात बार सभी अंगों पर घुमाने का विधान है। 

इसके बाद शंख में जल लेकर भगवान के चारों ओर घुमाकर अपने ऊपर तथा भक्तजनों पर जल छोड़ दें। फिर मन से ही ठाकुरजी को साष्टांग प्रणाम करें। इस तरह भगवान की आरती उतारने का विधान है।

● घर में एक या दो बाती की ही आरती करनी चाहिए। जबकि मन्दिरों में ५, ७, ११ या २१ बतियों से आरती की जाती है।

● भगवान की शुद्ध घी में डुबोई बाती से आरती करनी चाहिए।

● पूजन चाहे छोटा (पंचोपचार) हो या बड़ा (षोडशोपचार), बिना आरती के पूर्ण नहीं माना जाता है।

भगवान की आरती करने व देखने का महत्व

●जिस प्रकार आरती के दीपक की बाती ऊपर की ओर रहती है उसी प्रकार आरती देखने, करने व लेने से मनुष्य आध्यात्मिक दृष्टि से उच्चता प्राप्त करता है।

●जो भगवान विष्णु की आरती को नित्य देखता है या करता है, वह सात जन्म तक उच्च कुल में जन्म लेकर अंत में मोक्ष पाता है।

●कपूर से भगवान की आरती करने पर अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है साथ ही मनुष्य के कुल का उद्धार हो जाता है और अंत में साधक भगवान अनंत में ही मिल जाता है।

●घी की बाती से जो मनुष्य भगवान की आरती उतारता है वह बहुत समय तक स्वर्गलोक में निवास करता है। 
नारायण! नारायण!! नारायण!!!🙏🏻

गुरुवार, 6 अक्टूबर 2022

हिंदू धर्म में बताई गई आश्रम प्रणाली का अर्थ !


‘हिन्दू धर्म में ‘वर्णाश्रम’, अर्थात वर्ण तथा आश्रम यह जीवनपद्धति बताई गई है । उनमें से वर्ण अर्थात जाति नहीं, अपितु साधना का मार्ग । 

आश्रम चार हैं :-

१. ब्रह्मचर्याश्रम, 

२. गृहस्थाश्रम, 

३. वाणप्रस्थाश्रम तथा 

४. सन्यासाश्रम।


जिनके अर्थ क्रमशः इस प्रकार हैं :-

१. ब्रह्मचर्यपालन, 

२. गृहस्थजीवन का पालन, 

३. गृहस्थाश्रम का त्याग कर मुनि वृत्ति से वन में रहना तथा 

४. सन्यास जीवन का पालन।

इन चारों शब्दों के साथ ‘आश्रम’ शब्द जोडने का महत्त्व यह है कि ‘जीवन के चारों चरणों में आश्रमवासी की भांति जीवन जिएं’, इसका स्मरण कराना।'

बुधवार, 5 अक्टूबर 2022

जामुन एक ऐसा वृक्ष जिसके अंग अंग में औषधि है।

🍇अगर जामुन की मोटी लकड़ी का टुकडा पानी की टंकी में रख दे तो टंकी में शैवाल, हरी काई नहीं जमेगी और पानी सड़ेगा भी नहीं। 

🍇जामुन की इस खुबी के कारण इसका इस्तेमाल नाव बनाने में बड़ा पैमाने पर होता है।

🍇पहले के जमाने में गांवो में जब कुंए की खुदाई होती तो उसके तलहटी में जामून की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है जिसे जमोट कहते है। 

🍇दिल्ली की निजामुद्दीन बावड़ी का हाल ही में हुए जीर्णोद्धार से ज्ञात हुआ 700 सालों के बाद भी गाद या अन्य अवरोधों की वजह से यहाँ जल के स्तोत्र बंद नहीं हुए हैं। 

🍇भारतीय पुरातत्व विभाग के प्रमुख के.एन. श्रीवास्तव के अनुसार इस बावड़ी की अनोखी बात यह है कि आज भी यहाँ लकड़ी की वो तख्ती साबुत है जिसके ऊपर यह बावड़ी बनी थी। श्रीवास्तव जी के अनुसार उत्तर भारत के अधिकतर कुँओं व बावड़ियों की तली में जामुन की लकड़ी का इस्तेमाल आधार के रूप में किया जाता था।

🍇स्वास्थ्य की दृष्टि से विटामिन सी और आयरन से भरपूर जामुन शरीर में न केवल हीमोग्लोबिन की मात्रा को बढ़ाता। पेट दर्द, डायबिटीज, गठिया, पेचिस, पाचन संबंधी कई अन्य समस्याओं को ठीक करने में अत्यंत उपयोगी है।

🍇एक रिसर्च के मुताबिक, जामुन के पत्तियों में एंटी डायबिटिक गुण पाए जाते हैं, जो रक्त शुगर को नियंत्रित करने करती है। ऐसे में जामुन की पत्तियों से तैयार चाय का सेवन करने से डायबिटीज के मरीजों को काफी लाभ मिलेगा।

🍇सबसे पहले आप एक कप पानी लें। अब इस पानी को तपेली में डालकर अच्छे से उबाल लें। इसके बाद इसमें जामुन की कुछ पत्तियों को धो कर डाल दें। अगर आपके पास जामुन की पत्तियों का पाउडर है, तो आप इस पाउडर को 1 चम्मच पानी में डालकर उबाल सकते हैं। जब पानी अच्छे से उबल जाए, तो इसे कप में छान लें। अब इसमें आप शहद या फिर नींबू के रस की कुछ बूंदे मिक्स करके पी सकते हैं। 

🍇जामुन की पत्तियों में एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं. इसका सेवन मसूड़ों से निकलने वाले खून को रोकने में और संक्रमण को फैलने से रोकता है। जामुन की पत्तियों को सुखाकर टूथ पाउडर के रूप में प्रयोग कर सकते हैं. इसमें एस्ट्रिंजेंट गुण होते हैं जो मुंह के छालों को ठीक करने में मदद करते हैं। मुंह के छालों में जामुन की छाल के काढ़ा का इस्तेमाल करने से फायदा मिलता है। जामुन में मौजूद आयरन खून को शुद्ध करने में मदद करता है।

🍇जामुन की लकड़ी न केवल एक अच्छी दातुन है अपितु पानी चखने वाले (जलसूंघा) भी पानी सूंघने के लिए जामुन की लकड़ी का इस्तेमाल करते। 

☘️एक कदम आयुर्वेद की ओर…☘️