कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 19 सितंबर 2017

🔱" स्वस्तिक "🔱

💫स्वस्तिक शब्द को दो अक्षरों का जोड़ माना गया है – “सु” + “अस्ति”. संस्कृत के “सु” का अर्थ – शुभ तथा “अस्ति” का अर्थ – होना बताया गया है अर्थात शुभ होना इसका अर्थ हुआ. इस प्रकार कहा जा सकता है कि स्वस्तिक का अर्थ शुभ हो या कल्याण हो, है. अगर स्वस्तिक का जोड़ – सु + अस + क करें तो “सु” का अर्थ अच्छा, “अस” का अर्थ सत्ता अथवा अस्तित्व होता है और “क” का अर्थ कर्ता होता है, इस प्रकार स्वस्तिक का अर्थ अच्छा या मंगल करने वाला भी माना गया है. इसे पूजनीय माना गया है और देवता स्वरुप माना गया है तो यह देवताओं का तेज शुभ करने वाला है. कल्याण करने वाला है, इसी एक शब्द में ही सभी चीजें आ जाती हैं. सामान्य अर्थों में स्वस्तिक का अर्थ शुभ, मंगल तथा कल्याण करने वाला है.
💫स्वस्तिक बनाने के लिए चार भुजाएँ बनाई जाती हैं जो चारों दिशाओं पूर्व, दक्षिण, पश्चिम तथा उत्तर का बोध कराती हैं. पहले चार लाईनों का एक क्रॉस बनता है फिर उन चार लाईनों को फिर से अलग-अलग दिशाओं में स्वस्तिक बनाने के लिए मोड़ा जाता है, इस प्रकार से हमें उपदिशाएँ भी मिल जाती हैं. वास्तु में चार मुख्य दिशाओं के साथ चार उपदिशाओं की गणना भी की जाती है. स्वस्तिक बनाने के लिए सिंदूर अथवा केसर का प्रयोग किया जाता है लेकिन कहीं-कहीं पर हल्दी से भी स्वस्तिक बनाया जाता है.
💫 मुख्य द्वार पर अथवा मुख्य द्वार के दोनों ओर 6 से 6.5 इंच तक का स्वस्तिक बनाना चाहिए. इससे कम का बनता है तो नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह वह ज्यादा दिन तक रोक नहीं पाएगा.  
💫यदि घर के किसी विशेष भाग में वास्तु दोष हो तब उस भाग में पूजन करने के बाद 6*6 इंच का ताबें पर बना स्वस्तिक यंत्र लगा देना चाहिए. जिस दिशा में यह स्वस्तिक यंत्र लगाया है
💫जिस दिशा में यह स्वस्तिक यंत्र लगाया है उस दिशा के स्वामी का रत्न भी वहाँ लगा देना चाहिए. 
💫 यदि कोई व्यक्ति नया घर बना रहा है तब नींव की खुदाई करने बाद आठों दिशाओं की नींव में स्वस्तिक यंत्र के साथ दिशा स्वामी के रत्न को पूजा कर के दबा देना चाहिए. जहाँ-जहाँ यह यंत्र दबाने हैं वहाँ गृह स्वामी के हाथ जितना गड्ढा खोदकर चावल बिछाकर तब दोनों चीजों को दबाना चाहिए. ऎसा करने से इनका प्रभाव सकारात्मक ऊर्जा के रुप में घर देखा जा सकता है.
💫
ईशान दिशा—
इस दिशा के स्वामी बृहस्पति हैं।
पूर्व दिशा—
सूर्य इस दिशा के स्वामी हैं।
आग्नेय दिशा—
इस दिशा के स्वामी ग्रह शुक्र हैं।
इस दिशा में वास्तु दोष होने पर शुक्र है।
दक्षिण दिशा—
इस दिशा के स्वामी ग्रह मंगल हैं।
नैऋत्य दिशा—
इस दिशा के स्वामी राहु ग्रह हैं।
पश्चिम दिशा—
यह शनि की दिशा है।
वायव्य दिशा—
चन्द्रमाँ इस दिशा के स्वामी ग्रह है
उत्तर दिशा—
यह दिशा बुध ग्रह के प्रभाव में आता है।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें