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रविवार, 22 जनवरी 2023

🍁 धन्ना जाट- भक्तमाल कथा 🍁

एक गांव में भागवत कथा का आयोजन किया गया, पंडित जी भागवत कथा सुनाने आए। पूरे सप्ताह कथा वाचन चला। पूर्णाहुति पर दान दक्षिणा की सामग्री इक्ट्ठा कर घोडे पर बैठकर पंडित जी रवाना होने लगे। उसी गांव में एक सीधा-साधा निर्धन किसान भी रहता था जिसका नाम था धन्ना जाट। 

धन्ना जाट ने उनके पांव पकड लिए। वह बोला- "पंडित जी महाराज ! आपने कहा था, कि जो ठाकुर जी की सेवा करता है उसका बेडा पार हो जाता है। आप तो जा रहे है। 

मेरे पास न तो ठाकुर जी हैं, न ही मैं उनकी सेवा पूजा की विधि जानता हूँ। इसलिए आप मुझे ठाकुर जी देकर पधारें।" पंडित जी ने कहा- "चौधरी ! तुम्हीं ले आना।" धन्ना जाट ने कहा - "मैंने तो कभी ठाकुर जी देखे नहीं, लाऊंगा कैसे ?"

    पंडित जी को घर जाने की जल्दी थी। उन्होंने पिण्ड छुडाने को अपना भंग घोटने का सिलबट्टा उसे दिया और बोले- "ये ठाकुर जी हैं ! इनकी सेवा पूजा करना।' धन्ना जाट ने कहा - "महाराज ! में सेवा पूजा की विधि भी नहीं जानता, आप ही बताएं ?

 पंडित जी ने कहा - "पहले स्वयं नहाना फिर ठाकुरजी को नहलाना। इन्हें भोग चढाकर तत्पष्चात प्रशाद ग्रहण करना।" इतना कहकर पंडित जी ने घोडे को एड़ी लगाई व चल दिए।
     
   धन्ना सीधा एवं सरल व्यक्ति था। पंडित जी के कहे अनुसार सिलबट्टे को बतौर ठाकुरजी अपने घर में स्थापित कर दिया। दूसरे दिन स्वयं स्नान कर सिलबट्टे रूप ठाकुर जी को नहलाया। विधवा मां का बेटा था। 

खेती भी ज्यादा नहीं थी। इसलिए भोग में अपने हिस्से का बाजरी का टिक्कड एवं मिर्च की चटनी रख दी। ठाकुरजी से धन्ना ने कहा, पहले आप भोग लगाओ फिर मैं खाऊंगा। जब ठाकुरजी ने भोग नहीं लगाया तो बोला- पंडित जी तो धनवान थे। खीर-पूडी एवं मोहन भोग लगाते थे। मैं तो निर्धन जाट का बेटा हूं, इसलिए मेरी रोटी-चटनी का भोग आप कैसे लगाएंगे ? पर स्पष्ट सुन लो मेरे पास तो यही भोग है।

 खीर-पूडी मेरे बस की नहीं है। ठाकुरजी ने भोग नहीं लगाया तो धन्ना भी सारा दिन भूखा रहा। इसी तरह वह रोज एक बाजरे का ताजा टिक्कड एवं मिर्च की चटनी रख देता एवं भोग लगाने की प्रार्थना करता। ठाकुरजी तो पसीज ही नहीं रहे थे। यह क्रम निरन्तर छह दिन तक चलता रहा। 

छठे दिन धन्ना बोला-ठाकुर जी, चटनी रोटी खाते क्यों नहीं शर्माते हो ? आप कहो तो मैं आंखें मूंद लूँ फिर खा लो। ठाकुरजी ने फिर भी भोग नहीं लगाया। धन्ना भी भूखा-प्यासा था। 

सातवें दिन धन्ना जट बुद्धि पर उतर आया। फूट-फूट कर रोने लगा एवं कहने लगा कि, सुना था आप दीन-दयालु हो, पर आप भी निर्धन की कहां सुनते हो, मेरा रखा यह टिककड एवं चटनी आकर नहीं खाते हो तो मत खाओ। 

अब मुझे भी नहीं जीना है, इतना कह उसने सिलबट्टा उठाया और सिर फोडने को तैयार हुआ, अचानक सिलबट्टे से एक प्रकाश पुंज प्रकट हुआ एवं धन्ना का हाथ पकड़ कर कहा - 'देख धन्ना ! मैं तेरी चटनी टिकडा खा रहा हूं।"

     ठाकुरजी बाजरे का टिक्कड एवं मिर्च की चटनी मजे से खा रहे थे। जब आधा टिक्कड खा लिया, तो धन्ना बोला- "क्या ठाकुरजी ! मेरा पूरा टिक्कड खा जाओगे ? मैं भी छह दिन से भूखा प्यासा हूं। आधा टिक्कड तो मेरे लिए भी रखो।" ठाकुरजी ने कहा - "तुम्हारी चटनी रोटी बडी स्वादिष्ट लग रही है तू दूसरी खा लेना।

" धन्ना ने कहा - "प्रभु ! मां मुझे एक ही रोटी देती है। यदि मैं दूसरी लूंगा तो मां भूखी रह जाएगी।" प्रभु ने कहा- 'फिर ज्यादा क्यों नहीं बनाता।" धन्ना ने कहा - "खेत छोटा सा है और मैं अकेला।" ठाकुरजी ने कहा - और खेत जोत ले। धन्ना बोला- "प्रभु ! मेरे पास बैल थोडे ही हैं, मैं तो खुद जुतता हूँ।" ठाकुरजी ने कहा - "नौकर रख ले।" धन्ना ने कहा-"प्रभु ! आप तो मेरी मजाक उडा रहे हो। नौकर रखने की हैसियत हो तो दो वक्त रोटी ही न खा लें हम मां-बेटे। इस पर ठाकुरजी ने कहा - चिन्ता मत कर मैं तेरी सहायता करूँगा।

      कहते है तबसे ठाकुरजी ने धन्ना का साथी बनकर उसकी सहायता करनी शुरू की। धन्ना के साथ खेत में कामकाज कर उसे अच्छी जमीन एवं बैलों की जोडी दिलवा दी। कुछ अर्से बाद घर में गाय भी आ गई। मकान भी पक्का बन गया। 

सवारी के लिए घोडा आ गया। धन्ना एक अच्छा खासा जमींदार बन गया। 
      
      कई साल बाद पंडितजी पुनः धन्ना के गांव भागवत कथा करने आए। धन्ना भी उनके दर्शन को गया। प्रणाम कर बोला- 

     "पंडितजी ! आप जो ठाकुरजी देकर गए थे वे छह दिन तो भूखे प्यासे रहे एवं मुझे भी भूखा प्यासा रखा। सातवें दिन उन्होंने भूख के मारे परेशान होकर मुझ निर्धन की रोटी खा ही ली। उनकी इतनी कृपा है कि खेत में मेरे साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर काम में सहायता करते है। 

अब तो घर में गाय भी है। सात दिन का घी-दूध का ‘सीधा‘ यानी बंदी का घी- दूध मैं ही भेजूंगा।"

         पंडित जी ने सोचा मूर्ख व्यक्ति है। मैं तो भांग घोटने का सिलबट्टा देकर गया था। गांव में पूछने पर लोगों ने बताया कि चमत्कार तो हुआ है। धन्ना अब निर्धन नहीं रहा। जमींदार बन गया है। दूसरे दिन पंडित जी ने धन्ना से कहा- कल कथा सुनने आओ तो अपने साथ अपने उस साथी को ले कर आना जो तुम्हारे साथ खेत में काम करता है। घर आकर धन्ना ने प्रभु से निवेदन किया कि कथा में चलो तो प्रभु ने कहा - "मैं नहीं जाऊंगा तुम जाओ।

" धन्ना बोला - "तब क्या उन पंडितजी को आपसे मिलाने घर ले आऊँ। प्रभु ने कहा - "बिल्कुल नहीं। मैं झूठी कथा कहने वालों से नहीं मिलता।

     जो मुझसे सच्चा प्रेम करता है और जो अपना काम मेरी पूजा समझ करता है मैं उसी के साथ रहता हूं।" सत्य ही कहा गया है:- "भक्त के वश में हैं भगवान्"

शुक्रवार, 20 जनवरी 2023

कैंसर का सबसे सस्ता इलाज खाने का सोडा


वैज्ञानिकों ने ढूंढ निकाला कैंसर का सबसे सस्ता इलाज, 2 रुपए की ये चीज जड़ से खत्म कर सकती है कैंसर

“खानें वाला सोडा ....”

कैंसर के मरीजों के लिए एक बड़ी राहत वाली खबर आई है। दुनियाभर के वैज्ञानिक जिस बीमारी के लिए सालों से इलाज ढूंढ रहे थे उसका आखिरकार तोड़ मिल चुका है।

अब तक दुनिया भर में कैंसर के इलाज के लिए अरबों रुपए पानी की तरह बहा दिए गए हैं, लेकिन कोई भी दवा पूरी तरह से कैंसर को जड़ से खत्म करने में नाकाम साबित हुई है। अब तक बाजार में जो दवाएं मौजूद हैं, वो सिर्फ कैंसर को बढ़ने से रोक देती हैं।

अमेरिका के लडविंग इंस्टीट्यूट फॉर कैंसर रिसर्च में अमेरिकी वैज्ञानिकों के दल ने हाल ही में कुछ नए शोध किए। इस टीम की अगुवाई मशहूर कैंसर वैज्ञानिक और जॉन हॉप्किंग यूनिवर्सिटी के ऑनकोलॉजिस्ट (कैंसर विशेषज्ञ) डॉ. ची वान डैंग ने की। उन्होंने कहा कि हम सालों तक रिसर्च कर चुके हैं और अब तक कैंसर के जो भी इलाज मौजूद हैं वो काफी महंगे हैं। हमने जो शोध किया उसमें चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं। आपके किचन में रखा बेकिंग सोड़ा कैंसर के लिए रामबाण औषधि है।

डॉ. डैंग के मुताबिक, हमने बेकिंग सोडा पर लंबी रिसर्च की और जो परिणाम हमने अब तक सिर्फ सुने थे वो प्रमाणित हो गए। उन्होंने बताया कि यदि कैंसर का मरीज बेकिंग सोडा पानी के साथ मिलाकर पी ले तो कुछ ही दिनों में इसका असर दिखने लगेगा। उन्होंने बताया कि कीमोथेरेपी और महंगी दवाओं से भी तेजी से बेकिंग सोडा ट्यूमर सेल्स को न सिर्फ बढ़ने से रोकता है, बल्कि उसे खत्म भी कर देता है।

डॉ. डैंग ने पूरी जानकारी देते हुए बताया कि हमारे शरीर में हर सेकेंड लाखों सेल्स खत्म होते हैं और नए सेल्स उनकी जगह ले लेते हैं। लेकिन कई बार नए सेल्स के अंदर खून का संचार रुक जाता है और ऐसे ही सेल्स एकसाथ इकट्ठा हो जाते हैं, जो धीरे-धीरे बढ़ता है। इसी को ट्यूमर कहा जाता है। उन्होंने बताया कि हमने ब्रेस्ट और कोलोन कैंसर के ट्यूमर सेल्स पर बेकिंग सोडा के प्रभाव की जांच की और हमने पाया कि बेकिंग सोडा वाला पानी पीने के बाद जिस तेजी से ट्यूमर सेल्स बढ़ रहे तो वो काफी हद तक रुक गए।

उन्होंने बताया, ट्यूमर सेल्स में आक्सिजन पूरी तरह खत्म हो जाती है, तो उसे मेडिकल भाषा में हिपोक्सिया कहते हैं। हिपोक्सिया की वजह से तेजी से उस हिस्से का पीएच लेवल गिरने लगता है और ट्यूमर के ये सेल एसिड बनाने लगते हैं। इस एसिड की वजह से पूरे शरीर में भयंकर दर्द शुरू हो जाता है। अगर इन सेल्स का तुरंत इलाज न किया जाए तो ये कैंसर सेल्स में तब्दील हो जाते हैं। डॉ. डैंग के मुताबिक, बेकिंग सोडा मिला पानी पीने से शरीर का पीएच लेवल भी मेंटेन रहता है और एसिड वाली समस्या न के बराबर होती है। डॉ. डैंग ने बताया कि कई बार कीमोथेरेपी के बावजूद भी ऐसे कैंसर सेल्स शरीर में रह जाते हैं, जो बाद में दोबारा से शरीर में कैंसर सेल्स बनाने लगते हैं। इन्हें T सेल्स कहते हैं। इन टी सेल्स को नाकाम सिर्फ बेकिंग सोडा से ही किया जा सकता है।

डॉ. वॉन डैंग ने कहा कि पहले भी ये बात आप सुन चुके होंगे कि बेकिंग सोडा कैंसर समेत कई बीमारियों का इलाज है। लेकिन अब हम प्रमाणिक तौर पर कह सकते हैं कि कैंसर का सबसे सस्ता और अच्छा इलाज बेकिंग सोडा से मिला पानी है। उन्होंने बताया कि जिन लोगों पर हमने प्रयोग किए उन्हें दो हफ्तों पर पानी में बेकिंग सोडा मिलाकर दिया और सिर्फ 2 हफ्ते में उन लोगों के ट्यूमर सेल्स लगभग खत्म हो गई !

TATA मेमोरियल हॉस्पिटल के डॉ. राजेन्द्र ए. बडवे ने जोर देकर कहा कि यदि हर कोई इस समाचार को प्रसारित करता है, तो निश्चित रूप से समाज की बड़ी सेवा होगी।
🌹🌹🙏🏻🌹🌹
Forward as received.

आप सबसे हाथ जोड़कर नम्र निवेदन है कि कृपया इस महत्वपूर्ण सन्देश को सभी को भेजें जिससे सभी लाभान्वित हो।

सोमवार, 9 जनवरी 2023

हंस 🦢 और कौवा🐧

पुराने जमाने में एक शहर में दो ब्राह्मण पुत्र रहते थे, एक गरीब था तो दूसरा अमीर। दोनों पड़ोसी थे। गरीब ब्राह्मण की पत्नी उसे रोज़ ताने देती झगड़ती।

एक दिन ग्यारस के दिन गरीब ब्राह्मण पुत्र झगड़ों से तंग आ जंगल की ओर चल पड़ता है ये सोच कर कि जंगल में शेर या कोई मांसाहारी जीव उसे मार कर खा जायेगा, उस जीव का पेट भर जायेगा और मरने से वो रोज की झिक झिक से मुक्त हो जायेगा।

जंगल में जाते उसे एक गुफ़ा नज़र आती है। वो गुफ़ा की तरफ़ जाता है। गुफ़ा में एक शेर सोया होता है और शेर की नींद में ख़लल न पड़े इसके लिये हंस का पहरा होता है।

हंस ज़ब दूर से ब्राह्मण पुत्र को आता देखता है तो चिंता में पड़ सोचता है...
ये ब्राह्मण आयेगा शेर जगेगा और इसे मार कर खा जायेगा...

ग्यारस के दिन मुझे पाप लगेगा इसे बचायें कैसे?
उसे उपाय सुझता है और वो शेर के भाग्य की तारीफ़ करते कहता है। ओ जंगल के राजा... उठो, जागो आज आपके भाग्य खुले हैं, ग्यारस के दिन खुद विप्रदेव आपके घर पधारे हैं, जल्दी उठें और इन्हें दक्षिणा दें रवाना करें. आपका मोक्ष हो जायेगा...

ये दिन दुबारा आपकी जिंदगी में शायद ही आये, आपको पशु योनी से छुटकारा मिल जायेगा।

शेर दहाड़ कर उठता है, हंस की बात उसे अच्छी लगती है और पूर्व में शिकार हुए मनुष्यों के गहने थे, वे सब के सब उस ब्राह्मण के पैरों में रख, शीश नवाता है, जीभ से उनके पैर चाटता है।

हंस ब्राह्मण को इशारा करता है, विप्रदेव ये सब गहने उठाओ और जितना जल्द हो सके वापस अपने घर जाओ...
ये सिंह है, कब मन बदल जाय!
ब्राह्मण बात समझता है, घर लौट जाता है।

पडौसी अमीर ब्राह्मण की पत्नी को जब ये सब पता चलता है तो वो भी अपने पति को जबरदस्ती अगली ग्यारस को जंगल में उसी शेर की गुफा की ओर भेजती है।

अब शेर का पहेरादार बदल जाता है। नया पहरेदार होता है ""कौवा""

जैसे कौवे की प्रवृति होती है वो वैसा ही सोचता है... बढीया है। ब्राह्मण आया.. शेर को जगाऊं.. शेर की नींद में ख़लल पड़ेगी, शेर गुस्साएगा, ब्राह्मण को मारेगा तो कुछ मेरे भी हाथ लगेगा, मेरा पेट भर जायेगा।

ये सोच वो कांव.. कांव.. कांव.. चिल्लाता है। शेर गुस्सा हो जगता है। दूसरे ब्राह्मण पर उसकी नज़र पड़ती है, उसे हंस की बात याद आ जाती है.. वो समझ जाता है कौवा क्यूं कांव.. कांव कर रहा है।

वो अपने पूर्व में हंस के कहने पर किये गये धर्म को खत्म नहीं करना चाहता.. पर फिर भी नहीं शेर, शेर होता है जंगल का राजा...

वो दहाड़ कर ब्राह्मण को कहता है.. "हंस उड़ सरवर गये और अब काग भये प्रधान... थे तो विप्रा थांरे घरे जाओ... मैं किनाइनी जिजमान

अर्थात् हंस जो अच्छी सोच वाले अच्छी मनोवृत्ति वाले थे उड़ के सरोवर यानि तालाब को चले गये हैं और अब कौवा प्रधान पहरेदार है जो मुझे तुम्हें मारने के लिये उकसा रहा है। मेरी बुद्धि घूमें उससे पहले ही.. हे ब्राह्मण, यहां से चले जाओ.. शेर किसी का जजमान नहीं हुआ है.. वो तो हंस था जिसने मुझ शेर से भी पुण्य करवा दिया।

दूसरा ब्राह्मण सारी बात समझ जाता है और डर के मारे तुरंत प्राण बचाकर अपने घर की ओर भाग जाता है...


शिक्षा:-

जो किसी का दु:ख देख दु:खी होता है और उसका भला सोचता है... वो हंस है और जो किसी को दु:खी देखना चाहता है, किसी का सुख जिसे सहन नहीं होता... वो कौवा है।

जो आपस में मिलजुल, भाईचारे से रहना चाहते हैं, वे हंस प्रवृत्ति के हैं। और जो झगड़े कर एक दूजे को मारने लूटने की प्रवृत्ति रखते हैं, वे कौवे की प्रवृति के हैं।

बुधवार, 28 दिसंबर 2022

ब्रह्म मुहूर्त में उठने की परंपरा क्यों…!?

ब्रह्म मुहूर्त:-
रात्रि के अंतिम प्रहर को ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं। हमारे ऋषि मुनियों ने इस मुहूर्त का विशेष महत्व बताया है। उनके अनुसार यह समय निद्रा त्याग के लिए सर्वोत्तम है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने से सौंदर्य, बल, विद्या, बुद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। सूर्योदय से चार घड़ी (लगभग डेढ़ घण्टे) पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में ही जग जाना चाहिये। इस समय सोना शास्त्र निषिद्ध है।


ब्रह्म का मतलब परम तत्व या परमात्मा। मुहूर्त यानी अनुकूल समय। रात्रि का अंतिम प्रहर अर्थात प्रात: ०४ से ०५.३० बजे का समय ब्रह्म मुहूर्त कहा गया है।


“ब्रह्ममुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी”।
(ब्रह्ममुहूर्त की निद्रा पुण्य का नाश करने वाली होती है।)



सिख धर्म में इस समय के लिए बेहद सुन्दर नाम है:-"अमृत वेला", जिसके द्वारा इस समय का महत्व स्वयं ही साबित हो जाता है। ईश्वर भक्ति के लिए यह महत्व स्वयं ही साबित हो जाता है। ईवर भक्ति के लिए यह सर्वश्रेष्ठ समय है। इस समय उठने से मनुष्य को सौंदर्य, लक्ष्मी, बुद्धि, स्वास्थ्य आदि की प्राप्ति होती है। उसका मन शांत और तन पवित्र होता है।


ब्रह्म मुहूर्त में उठना हमारे जीवन के लिए बहुत लाभकारी है। इससे हमारा शरीर स्वस्थ होता है और दिनभर स्फूर्ति बनी रहती है। स्वस्थ रहने और सफल होने का यह ऐसा फार्मूला है जिसमें खर्च कुछ नहीं होता। केवल आलस्य छोड़ने की जरूरत है।



पौराणिक महत्व :-
वाल्मीकि रामायण के मुताबिक माता सीता को ढूंढते हुए श्रीहनुमान ब्रह्ममुहूर्त में ही अशोक वाटिका पहुंचे। जहां उन्होंने वेद व यज्ञ के ज्ञाताओं के मंत्र उच्चारण की आवाज सुनी।



शास्त्रों में भी इसका उल्लेख है-

वर्णं कीर्तिं मतिं लक्ष्मीं स्वास्थ्यमायुश्च विदन्ति।
ब्राह्मे मुहूर्ते संजाग्रच्छि वा पंकज यथा॥

अर्थात:- ब्रह्म मुहूर्त में उठने से व्यक्ति को सुंदरता, लक्ष्मी, बुद्धि, स्वास्थ्य, आयु आदि की प्राप्ति होती है। ऐसा करने से शरीर कमल की तरह सुंदर हो जाता हे।



ब्रह्म मुहूर्त और प्रकृति :-
ब्रह्म मुहूर्त और प्रकृति का गहरा नाता है। इस समय में पशु-पक्षी जाग जाते हैं। उनका मधुर कलरव शुरू हो जाता है। कमल का फूल भी खिल उठता है। मुर्गे बांग देने लगते हैं। एक तरह से प्रकृति भी ब्रह्म मुहूर्त में चैतन्य हो जाती है। यह प्रतीक है उठने, जागने का। प्रकृति हमें संदेश देती है ब्रह्म मुहूर्त में उठने के लिए।



इसलिए मिलती है सफलता व समृद्धि :-
आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में उठकर टहलने से शरीर में संजीवनी शक्ति का संचार होता है। यही कारण है कि इस समय बहने वाली वायु को अमृततुल्य कहा गया है। इसके अलावा यह समय अध्ययन के लिए भी सर्वोत्तम बताया गया है क्योंकि रात को आराम करने के बाद सुबह जब हम उठते हैं तो शरीर तथा मस्तिष्क में भी स्फूर्ति व ताजगी बनी रहती है। प्रमुख मंदिरों के पट भी ब्रह्म मुहूर्त में खोल दिए जाते हैं तथा भगवान का श्रृंगार व पूजन भी ब्रह्म मुहूर्त में किए जाने का विधान है।


ब्रह्ममुहूर्त के धार्मिक, पौराणिक व व्यावहारिक पहलुओं और लाभ को जानकर हर रोज इस शुभ घड़ी में जागना शुरू करें तो बेहतर नतीजे मिलेंगे।


ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाला व्यक्ति सफल, सुखी और समृद्ध होता है, क्यों? क्योंकि जल्दी उठने से दिनभर के कार्यों और योजनाओं को बनाने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। इसलिए न केवल जीवन सफल होता है। शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने वाला हर व्यक्ति सुखी और समृद्ध हो सकता है। कारण वह जो काम करता है उसमें उसकी प्रगति होती है। विद्यार्थी परीक्षा में सफल रहता है। जॉब (नौकरी) करने वाले से बॉस खुश रहता है। 


बिजनेसमैन अच्छी कमाई कर सकता है। बीमार आदमी की आय तो प्रभावित होती ही है, उल्टे खर्च बढऩे लगता है। सफलता उसी के कदम चूमती है जो समय का सदुपयोग करे और स्वस्थ रहे। अत: स्वस्थ और सफल रहना है तो ब्रह्म मुहूर्त में उठें।


वेदों में भी ब्रह्म मुहूर्त में उठने का महत्व और उससे होने वाले लाभ का उल्लेख किया गया है।

प्रातारत्नं प्रातरिष्वा दधाति तं चिकित्वा प्रतिगृह्यनिधत्तो।
तेन प्रजां वर्धयमान आयू रायस्पोषेण सचेत सुवीर:॥ :- ऋग्वेद


अर्थात:- सुबह सूर्य उदय होने से पहले उठने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। इसीलिए बुद्धिमान लोग इस समय को व्यर्थ नहीं गंवाते। सुबह जल्दी उठने वाला व्यक्ति स्वस्थ, सुखी, ताकतवाला और दीर्घायु होता है।



यद्य सूर उदितोऽनागा मित्रोऽर्यमा। सुवाति सविता भग:॥ :- सामदेव

अर्थात:- व्यक्ति को सुबह सूर्योदय से पहले शौच व स्नान कर लेना चाहिए। इसके बाद भगवान की पूजा-अर्चना करना चाहिए। इस समय की शुद्ध व निर्मल हवा से स्वास्थ्य और संपत्ति की वृद्धि होती है।



उद्यन्त्सूर्यं इव सुप्तानां द्विषतां वर्च आदद

अर्थात:- सूरज उगने के बाद भी जो नहीं उठते या जागते उनका तेज खत्म हो जाता है।



व्यावहारिक महत्व:-
व्यावहारिक रूप से अच्छी सेहत, ताजगी और ऊर्जा पाने के लिए ब्रह्ममुहूर्त बेहतर समय है। क्योंकि रात की नींद के बाद पिछले दिन की शारीरिक और मानसिक थकान उतर जाने पर दिमाग शांत और स्थिर रहता है। वातावरण और हवा भी स्वच्छ होती है। ऐसे में देव उपासना, ध्यान, योग, पूजा तन, मन और बुद्धि को पुष्ट करते हैं।



जैविक घड़ी पर आधारित शरीर की दिनचर्या:-
प्रातः ०३ से ०५ – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से फेफड़ों में होती है। थोड़ा गुनगुना पानी पीकर खुली हवा में घूमना एवं प्राणायाम करना । इस समय दीर्घ श्वसन करने से फेफड़ों की कार्यक्षमता खूब विकसित होती है। उन्हें शुद्ध वायु (आक्सीजन) और ऋण आयन विपुल मात्रा में मिलने से शरीर स्वस्थ व स्फूर्तिमान होता है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाले लोग बुद्धिमान व उत्साही होते है, और सोते रहने वालों का जीवन निस्तेज हो जाता है ।

नारायण! नारायण!! नारायण!!! 🙏🏻

सोमवार, 19 दिसंबर 2022

क्या ब्रह्मास्त्र से भी घातक है महाविध्वंसक सुदर्शन चक्र…!?

🛕 ॐ नमो भगवते वासुदेवाय!🛕
हिंदू धर्म के सभी देवी देवताओं ने कोई न कोई अस्त्र और शस्त्र धारण किया हुआ है जिसमें जगत के पालनहार भगवान श्री हरि विष्णु सुदर्शन चक्र धारण करते हैं मान्यता है कि ये चक्र बेहद शक्तिशाली और महाविध्वंसक अस्त्र है यह भगवान ब्रह्मा के ब्रह्मास्त्र से भी अधिक ताकतवार है भगवान श्री हरि विष्णु और उनके अवतार श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कई बड़े बड़े राक्षसों का वध किया था तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा भगवान श्री हरि विष्णु के इसी महाविध्वंसक अस्त्र के बारे में बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।

शास्त्र अनुसार सभी महाअस्त्रों में से सिर्फ सुदर्शन चक्र ही ऐसा है जो लगातार गतिशील रहता है सुदर्शन चक्र के निर्माण को लेकर यह कहा जाता है कि महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन ने खांडव वन को जलाने में अग्नि देवता की सहायता की थी बदले में उन्होंने श्री कृष्ण को एक चक्र और एक कौमोदकी गदा भेंद की थी एक प्रचलित कथा यह भी है कि परशुराम ने भगवान श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र दिया था।

वही सुदर्शन चक्र की खासियत यह है कि इसे दुश्मन पर फेंका नहीं जाता है यह मन की गति से चलता है और शत्रु का विनाश करके फिर वापस लौट आता है ऐसा माना जाता है कि इस चक्र से बचने के लिए पूरी धरती पर कोई जगह नहीं है वही पुराणों और धार्मिक ग्रंथों की मानें तो यह एक सेकंड में लाखों बार घूमता है।

इसका वजन 2200 किलो माना जाता है। आपको बता दें कि सुदर्शन चक्र एक गोलाकार अस्त्र है जो आकार में लगभग 12-30 सेंटीमीटर व्यास का है इस चक्र में दो पंक्तियों में लाखों कीलें विपरीत दिशाओं में चलती हैं जो इसे एक दांतेदार किनारा देती है ऐसा कहा जाता है कि यह अस्त्र ब्रह्मास्त्र से भी कई गुना अधिक शक्तिशाली अस्त्र है।
🙏🏻🚩 जय श्री हरि।🚩🙏🏻

रविवार, 23 अक्टूबर 2022

दिवाली की रात, यहां "दीपक" अवश्य लगाएं!

🍁🍁  नारायण 🍁🍁


१. पीपल के पेड़ के नीचे दीपावली की रात एक दीपक लगाकर घर लौट आएं। दीपक लगाने के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए। ऐसा करने पर आपकी धन से जुड़ी समस्याएं दूर हो सकती हैं।



२.बिल्ववृक्ष के नीचे भी दीपावली की शाम दीपक लगाएं। बिल्ववृक्ष भगवान शिव का प्रिय है। अत: यहां दीपक लगाने पर उनकी कृपा प्राप्त होती है।



३.घर के आसपास जो भी मंदिर हो वहां रात के समय दीपक अवश्य लगाएं। इससे सभी देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है।



४.घर के पास कोई नदी या तालाब हो तो वहा पर भी रात के समय दीपक अवश्य लगाएं। इससे दोषो से मुक्ति मिलती है ! 



५.घर के आसपास वाले चौराहों पर रात के समय दीपक लगाना चाहिए। ऐसा करने से भी पैसों से जुड़ी समस्याएं समाप्त हो सकती हैं।




६.तुलसी जी और शालिग्राम के पास रात के समय दीपक अवश्य लगाएं। ऐसा करने पर महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।



७. घर के पूजन स्थल में दीपक लगाएं, जो पूरी रात बुझना नहीं चाहिए। ऐसा करने पर महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।




८.घर के आंगन में भी दीपक लगाना चाहिए। ध्यान रखें यह दीपक भी रातभर बुझना नहीं चाहिए।




९.धन प्राप्ति की कामना वाले व्यक्ति को दीपावली की रात मुख्य दरवाजे की चौखट के दोनों ओर दीपक अवश्य लगाना चाहिए।
 



१०.पितरों का दीपक, गया तीर्थ के नाम से घर के दक्षिण दिशा में लगाये, इस से पितृदोष से मुक्ति मिलती है।


नारायण! नारायण!! नारायण!!!

गुरुवार, 13 अक्टूबर 2022

करकचतुर्थी (करवाचौथ) व्रत पर भ्रम निवारण…!!


भ्रम १. - करवाचौथ व्रत का विधान सनातन धर्म में नहीं है।

उच्छेद - ऐसा नहीं है करवाचौथ शास्त्र (व्रतराज) में करकचतुर्थी व्रत के रुप में कहा है उसका विधान भी वहां देखा जा सकता है।

भ्रम २. - इसे कन्या अथवा जिसका वरण किया जा चुका है ऐसी कन्या भी कर सकतीं है।

उच्छेद - यह भी अनुचित है इसका अधिकार मात्र सौभाग्यवती स्त्रियों को ही है।

भ्रम ३. - रात्रि में छननी से चन्द्र और पति को देखना चाहिए और एक दूसरे को जल आदि पिलाना चाहिए।

उच्छेद - छननी से देखने का विधान शास्त्र में नहीं है न ही जल आदि पिलाने का मात्र चन्द्रपूजन कर अर्घ्यादि देना ही विहित हुआ है।

भ्रम ४. - यदि किसी कारणवश बीच में एक बार व्रत छूट जाऐ तो व्रतभंग होता है, फिर से उसे विधानपूर्वक करना होता है।

उच्छेद - यदि अपरिहार्य कारण से छूट जाऐ तो पुन: पूर्ववत् विधि से व्रत करें।

भ्रम ५. - इस व्रत का उद्यापन नहीं होता।

उच्छेद - ऐसा नहीं है,उद्यापन भी किया जा सकता है।

प्रश्न. - मासिक धर्म और अशौचादि में यह व्रत नहीं करना चाहिए?

उत्तर - मासिक धर्म में पति द्वारा व्रत करवाऐं, दोनों के अशौच में होने पर किसी ब्राह्मण से करवाऐं।

प्रश्न - इसका क्या विधान है?

उत्तर - चन्द्रोदय व्यापिनी कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को श्रद्धा पूर्वक व्रत करें, वस्त्र पर वटवृक्ष को चित्रित कर भगवान् शिव, गौरी गणेश कार्तिक की पूजा करें, व्रतकथा का श्रवण करें, रात्रि में चन्द्रोदय होने पर चन्द्र की पूजा कर अर्घ्य दें पति की पूजा करके भोजन ग्रहण करें। 

द्वारा- पं. यज्ञदत्त
नारायण! नारायण!! नारायण!!!🙏🏻