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सोमवार, 8 जनवरी 2024

पपीते के पत्ते की चाय किसी भी स्टेज के कैंसर को सिर्फ 60 से 90 दिन में जड़ से खत्म किया जा सकता है।

पपीते के पत्ते :–
 तीसरी और चौथी स्टेज का कैंसर सिर्फ 35 से 90 दिनों में ठीक हो सकता है।

 अब तक :-
 हम इंसानों ने पपीते के पत्तों का इस्तेमाल बहुत ही सीमित तरीके से किया होगा...

 (खासतौर पर प्लेटलेट कम करने या त्वचा संबंधी या अन्य किसी छोटे या बड़े प्रयोग के लिए)

 लेकिन,
 आज हम आपको क्या बताने जा रहे हैं -
 ये वाकई आपको हैरान कर देगा.

 आप सिर्फ पांच हफ्ते में कैंसर जैसी गंभीर बीमारी को जड़ से खत्म कर सकते हैं।

 यह प्रकृति की एक शक्ति है

 अनेक प्रकार की वैज्ञानिक खोजों से बहुत सारा ज्ञान प्राप्त हुआ जो -

 पपीते के हर भाग जैसे फल, तना, बीज, पत्तियां, जड़ सभी में कैंसर कोशिकाओं को मारने और उसके विकास को रोकने के लिए शक्तिशाली औषधि होती है।

 विशेष रूप से -
 पपीते की पत्तियों में कैंसर कोशिकाओं को मारने और उनकी वृद्धि को रोकने के गुण प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।

 तो आइए जानें...

 यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा (2010) और अमेरिका तथा जापान के अंतरराष्ट्रीय डॉक्टरों और शोधकर्ताओं द्वारा किए गए शोध से यह पता चला है कि -

 पपीते की पत्तियों में कैंसर कोशिकाओं को मारने का गुण पाया जाता है।

 श्री। नाम डांग - एमडी, पीएचडी जो एक आविष्कारक हैं,

 उसके अनुसार -

 पपीते की पत्तियां सीधे कैंसर का इलाज कर सकती हैं,
उसके अनुसार -
 पपीते की पत्तियां करीब 10 तरह के कैंसर को खत्म कर सकती हैं।

 इनमें से प्रमुख हैं-
 स्तन कैंसर,
 फेफड़े का कैंसर,
 यकृत कैंसर,
 अग्न्याशय का कैंसर,
 गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर,

 इसमें जितनी ज्यादा पपीते की पत्तियां डाली जाएंगी.
 परिणाम उतना ही बेहतर होगा.

 पपीते की पत्तियां कैंसर का इलाज कर सकती हैं
 और,
 कैंसर को बढ़ने से रोकता है।

 तो आइए जानें-
 पपीते की पत्तियां कैंसर का इलाज कैसे करती हैं?

 (1) पपीता कैंसर रोधी अणुओं Th1 साइटोकिन्स के उत्पादन को बढ़ाता है।

 जो इम्यून सिस्टम को मजबूती प्रदान करता है.
 जिससे कैंसर कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं।

 (2) पपीते के पत्ते में पपेन नमक है -
 प्रोटियोलिटिक एंजाइम पाए जाते हैं,

 जो कैंसर कोशिकाओं पर प्रोटीन कोटिंग को तोड़ देता है...
 इससे कैंसर कोशिकाओं का शरीर में जीवित रहना मुश्किल हो जाता है।

 इस प्रकार,
 पपीते के पत्ते की चाय-
 रोगी के रक्त में मिलकर मैक्रोफेज को उत्तेजित करता है...
 प्रतिरक्षा प्रणाली को उत्तेजित करके,
 कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करना शुरू कर देता है।
कीमोथेरेपी/रेडियोथेरेपी और पपीते के पत्तों से उपचार के बीच मुख्य अंतर यह है -

 कीमोथेरेपी में –
 प्रतिरक्षा प्रणाली 'दबी हुई' है।

 जबकि पपीता निकलता है -
  प्रतिरक्षा प्रणाली को 'उत्तेजित' करता है,

 कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी में सामान्य कोशिकाएं भी 'प्रभावित' होती हैं।

 पपीता केवल कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करता है।

 सबसे बड़ी बात यह है कि -
 कैंसर के इलाज में पपीते की पत्तियों का भी कोई 'साइड इफेक्ट' नहीं होता है।

 *कैंसर में पपीते का सेवन नियम:

 कैंसर के लिए सर्वोत्तम पपीते की चाय :-

 दिन में 3 से 4 बार बनाएं पपीते की चाय
 यह आपके लिए बहुत फायदेमंद है.

 आइए अब जानते हैं -
 पपीते की चाय कैसे बनाएं:-

 (1) सबसे पहले 5 से 7 पपीते के पत्तों को धूप में अच्छी तरह सुखा लें।
 तब,
 इसे छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ लें.

 आपके पास 500 मि.ली. पानी में -
 कुछ सूखे पपीते के पत्ते डालें और अच्छी तरह उबालें।
 इतना उबालें कि -
 यह आधा रह गया है…
 आप इसे 125 ml दे सकते हैं, दिन में 2 बार करी पियें।
 और,
 अगर ज्यादा बनता है तो इसे दिन में 3 से 4 बार पियें।

 बचे हुए तरल को फ्रिज में रखें और आवश्यकतानुसार उपयोग करें।

 इसका रखें ख्याल:-

 इसे दोबारा गर्म न करें!

 (2) 7 ताजी पपीते की पत्तियां लें,
 - इसे हाथ से अच्छी तरह गूंथ लें.
 अब इसे 1 लीटर पानी में उबालें.

 जब यह 250 मि.ली. यदि यह बढ़ जाए तो इसे छानकर 125 मि.ली. इसे 2 टाइम यानि सुबह और शाम पियें।

 इस प्रयोग को आप दिन में 3 से 4 बार कर सकते हैं।

 आप जितना अधिक पपीते के पत्तों का उपयोग करेंगे...
 उतनी ही जल्दी आपको लाभ मिलेगा.

 टिप्पणी :-
 इस चाय को पीने के आधे घंटे तक आपको कुछ भी खाना-पीना नहीं चाहिए।

 कब तक करना है यह प्रयोग?

 तो यह प्रयोग आपको 5 सप्ताह में अपना परिणाम दिखा देगा...
 
हालाँकि
 हम आपको इसे 3 महीने तक इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं।

 और,
 ये लोग जो समझ गए हैं,
 उन लोगों ने उन लोगों का भी भला किया है,
 जिनका कैंसर 'तीसरे' या 'चौथे' चरण का था।

 ये संदेश :-
 सभी को भेजने हेतु एक विनम्र अनुरोध।
 एक कतरा चाहिए...
 ताकि अन्य जरूरतमंदों तक पहुंचा जा सके।
 डॉ. धनेश सूरत/कनाडा मोबाइल 9979618999
 कैंसर में 25 वर्ष का अनुभव!
➖➖➖➖➖
निस्वार्थ प्रचारक 
महेश्वर सुखवाल 
C/O
तेरहँवा ज्योतिर्लिंग 
श्रृंगेश्वर महादेव 
श्रृंगीधाम 

शनिवार, 28 अक्टूबर 2023

ऐसी पोस्ट बार-बार नही आती, इसे सेव करके सुरक्षित कर लें।


• दूध ना पचे तो - सोंफ

• दही ना पचे तो - सोंठ

• छाछ ना पचे तो - जीरा व काली मिर्च

• अरबी व मूली ना पचे तो - अजवायन

• कड़ी ना पचे तो - कड़ी पत्ता

• तेल, घी, ना पचे तो - कलौंजी

• पनीर ना पचे तो - भुना जीरा

• भोजन ना पचे तो - गर्म जल

• केला ना पचे तो - इलायची
• ख़रबूज़ा ना पचे तो - मिश्री का उपयोग करें
👉 योग,भोग और रोग ये तीन अवस्थाएं है।

◆ लकवा - सोडियम की कमी के कारण होता है।

◆ हाई बी पी में -  स्नान व सोने से पूर्व एक गिलास जल का सेवन करें तथा स्नान करते समय थोड़ा सा नमक पानी मे डालकर स्नान करें।

◆ लो बी पी - सेंधा नमक डालकर पानी पीयें।

◆ कूबड़ निकलना - फास्फोरस की कमी।

◆ कफ - फास्फोरस की कमी से कफ बिगड़ता है , फास्फोरस की पूर्ति हेतु आर्सेनिक की उपस्थिति जरुरी है। गुड व शहद खाएं।

◆ दमा, अस्थमा - सल्फर की कमी।

◆ सिजेरियन आपरेशन - आयरन , कैल्शियम की कमी।

◆ सभी क्षारीय वस्तुएं दिन डूबने के बाद खायें।

◆ अम्लीय वस्तुएं व फल दिन डूबने से पहले खायें।

◆ जम्भाई - शरीर में आक्सीजन की कमी।

◆ जुकाम - जो प्रातः काल जूस पीते हैं वो उस में काला नमक व अदरक डालकर पियें।

◆ ताम्बे का पानी - प्रातः खड़े होकर नंगे पाँव पानी ना पियें।

◆ किडनी - भूलकर भी खड़े होकर गिलास का पानी ना पिये।

गिलास एक रेखीय होता है तथा इसका सर्फेसटेन्स अधिक होता है । गिलास अंग्रेजो ( पुर्तगाल) की सभ्यता से आयी है अतः लोटे का पानी पियें,  लोटे का कम सर्फेसटेन्स होता है।
◆ अस्थमा , मधुमेह , कैंसर से गहरे रंग की वनस्पतियाँ बचाती हैं।

◆ वास्तु के अनुसार जिस घर में जितना खुला स्थान होगा उस घर के लोगों का दिमाग व हृदय भी उतना ही खुला होगा।

◆ परम्परायें वहीँ विकसित होगीं जहाँ जलवायु के अनुसार व्यवस्थायें विकसित होगीं।

◆ पथरी - अर्जुन की छाल से पथरी की समस्यायें ना के बराबर है।

◆ RO का पानी कभी ना पियें यह गुणवत्ता को स्थिर नहीं रखता । पानी की सफाई के लिए सहिजन की फली सबसे बेहतर है।

◆ सोकर उठते समय हमेशा दायीं करवट से उठें या जिधर का स्वर चल रहा हो उधर करवट लेकर उठें।

◆ पेट के बल सोने से हर्निया, प्रोस्टेट, एपेंडिक्स की समस्या आती है।

◆ भोजन के लिए पूर्व दिशा , पढाई के लिए उत्तर दिशा बेहतर है।

◆ HDL बढ़ने से मोटापा कम होगा LDL व VLDL कम होगा।

◆ गैस की समस्या होने पर भोजन में अजवाइन मिलाना शुरू कर दें।

◆ चीनी के अन्दर सल्फर होता जो कि पटाखों में प्रयोग होता है , यह शरीर में जाने के बाद बाहर नहीं निकलता है। चीनी खाने से पित्त बढ़ता है।

◆ शुक्रोज हजम नहीं होता है फ्रेक्टोज हजम होता है और भगवान् की हर मीठी चीज में फ्रेक्टोज है।

◆ वात के असर में नींद कम आती है।

◆ कफ के प्रभाव में व्यक्ति प्रेम अधिक करता है।

◆ कफ के असर में पढाई कम होती है।

◆ पित्त के असर में पढाई अधिक होती है।

◆ आँखों के रोग - कैट्रेक्टस, मोतियाविन्द, ग्लूकोमा , आँखों का लाल होना आदि ज्यादातर रोग कफ के कारण होता है।

◆ शाम को वात-नाशक चीजें खानी चाहिए।

◆ प्रातः 4 बजे जाग जाना चाहिए।

◆ सोते समय रक्त दवाव सामान्य या सामान्य से कम होता है।

◆ व्यायाम - वात रोगियों के लिए मालिश के बाद व्यायाम , पित्त वालों को व्यायाम के बाद मालिश करनी चाहिए । कफ के लोगों को स्नान के बाद मालिश करनी चाहिए।

◆ भारत की जलवायु वात प्रकृति की है , दौड़ की बजाय सूर्य नमस्कार करना चाहिए।

◆ जो माताएं घरेलू कार्य करती हैं उनके लिए व्यायाम जरुरी नहीं।

◆ निद्रा से पित्त शांत होता है , मालिश से वायु शांति होती है , उल्टी से कफ शांत होता है तथा उपवास ( लंघन ) से बुखार शांत होता है।

◆ भारी वस्तुयें शरीर का रक्तदाब बढाती है , क्योंकि उनका गुरुत्व अधिक होता है।

◆ दुनियां के महान वैज्ञानिक का स्कूली शिक्षा का सफ़र अच्छा नहीं रहा, चाहे वह 8 वीं फेल न्यूटन हों या 9 वीं फेल आइस्टीन हों ,

◆ माँस खाने वालों के शरीर से अम्ल-स्राव करने वाली ग्रंथियाँ प्रभावित होती हैं।

◆ तेल हमेशा गाढ़ा खाना चाहिएं सिर्फ लकडी वाली घाणी का , दूध हमेशा पतला पीना चाहिए।

◆ छिलके वाली दाल-सब्जियों से कोलेस्ट्रोल हमेशा घटता है।

◆ कोलेस्ट्रोल की बढ़ी हुई स्थिति में इन्सुलिन खून में नहीं जा पाता है। ब्लड शुगर का सम्बन्ध ग्लूकोस के साथ नहीं अपितु कोलेस्ट्रोल के साथ है।

◆ मिर्गी दौरे में अमोनिया या चूने की गंध सूँघानी चाहिए।

◆ सिरदर्द में एक चुटकी नौसादर व अदरक का रस रोगी को सुंघायें।

◆ भोजन के पहले मीठा खाने से बाद में खट्टा खाने से शुगर नहीं होता है।

◆ भोजन के आधे घंटे पहले सलाद खाएं उसके बाद भोजन करें।

◆ अवसाद में आयरन , कैल्शियम , फास्फोरस की कमी हो जाती है । फास्फोरस गुड और अमरुद में अधिक है।

◆ पीले केले में आयरन कम और कैल्शियम अधिक होता है । हरे केले में कैल्शियम थोडा कम लेकिन फास्फोरस ज्यादा होता है तथा लाल केले में कैल्शियम कम आयरन ज्यादा होता है । हर हरी चीज में भरपूर फास्फोरस होती है, वही हरी चीज पकने के बाद पीली हो जाती है जिसमे कैल्शियम अधिक होता है।

◆ छोटे केले में बड़े केले से ज्यादा कैल्शियम होता है।

◆ रसौली की गलाने वाली सारी दवाएँ चूने से बनती हैं।

◆ हेपेटाइट्स A से E तक के लिए चूना बेहतर है ।

◆ एंटी टिटनेस के लिए हाईपेरियम 200 की दो-दो बूंद 10-10 मिनट पर तीन बार दे।

◆ ऐसी चोट जिसमे खून जम गया हो उसके लिए नैट्रमसल्फ दो-दो बूंद 10-10 मिनट पर तीन बार दें । बच्चो को एक बूंद पानी में डालकर दें।

◆ मोटे लोगों में कैल्शियम की कमी होती है अतः त्रिफला दें । त्रिकूट ( सोंठ+कालीमिर्च+ मघा पीपली ) भी दे सकते हैं ।

◆ अस्थमा में नारियल दें। नारियल फल होते हुए भी क्षारीय है। दालचीनी + गुड + नारियल दें ।

◆ चूना बालों को मजबूत करता है तथा आँखों की रोशनी बढाता है ।

◆ दूध का सर्फेसटेंसेज कम होने से त्वचा का कचरा बाहर निकाल देता है ।

◆ गाय की घी सबसे अधिक पित्तनाशक फिर कफ व वायुनाशक है ।

◆ जिस भोजन में सूर्य का प्रकाश व हवा का स्पर्श ना हो उसे नहीं खाना चाहिए।
◆ गौ-मूत्र अर्क आँखों में ना डालें।
◆ गाय के दूध में घी मिलाकर देने से कफ की संभावना कम होती है लेकिन चीनी मिलाकर देने से कफ बढ़ता है।

◆ रात में आलू खाने से वजन बढ़ता है ।

◆ भोजन के बाद बज्रासन में बैठने से वात नियंत्रित होता है।

◆ भोजन के बाद कंघी करें कंघी करते समय आपके बालों में कंघी के दांत चुभने चाहिए । बाल जल्द सफ़ेद नहीं होगा ।

◆ अजवाईन अपान वायु को बढ़ा देता है जिससे पेट की समस्यायें कम होती है

◆ अगर पेट में मल बंध गया है तो अदरक का रस या सोंठ का प्रयोग करें

◆ कब्ज होने की अवस्था में सुबह पानी पीकर कुछ देर एडियों के बल चलना चाहिए ।

◆ रास्ता चलने, श्रम कार्य के बाद थकने पर या धातु गर्म होने पर दायीं करवट लेटना चाहिए ।
◆ जो दिन मे दायीं करवट लेता है तथा रात्रि में बायीं करवट लेता है उसे थकान व शारीरिक पीड़ा कम होती है ।
◆ बिना कैल्शियम की उपस्थिति के कोई भी विटामिन व पोषक तत्व पूर्ण कार्य नहीं करते है ।

◆ स्वस्थ्य व्यक्ति सिर्फ 5 मिनट शौच में लगाता है।
◆ भोजन करते समय डकार आपके भोजन को पूर्ण और हाजमे को संतुष्टि का संकेत है ।
◆ सुबह के नाश्ते में फल , दोपहर को दही व रात्रि को दूध का सेवन करना चाहिए ।

◆ रात्रि को कभी भी अधिक प्रोटीन वाली वस्तुयें नहीं खानी चाहिए । जैसे - दाल , पनीर , राजमा , लोबिया आदि ।

◆ शौच और भोजन के समय मुंह बंद रखें , भोजन के समय टी वी ना देखें ।

◆ जो बीमारी जितनी देर से आती है , वह उतनी देर से जाती भी है ।

◆ जो बीमारी अंदर से आती है , उसका समाधान भी अंदर से ही होना चाहिए ।

◆ एलोपैथी ने एक ही चीज दी है , दर्द से राहत । आज एलोपैथी की दवाओं के कारण ही लोगों की किडनी , लीवर , आतें , हृदय ख़राब हो रहे हैं । एलोपैथी एक बिमारी खत्म करती है तो दस बिमारी देकर भी जाती है ।
◆ खाने की वस्तु में कभी भी ऊपर से नमक नहीं डालना चाहिए , ब्लड-प्रेशर बढ़ता है ।
◆ रंगों द्वारा चिकित्सा करने के लिए इंद्रधनुष को समझ लें , पहले जामुनी , फिर नीला ..... अंत में लाल रंग ।
◆ छोटे बच्चों को सबसे अधिक सोना चाहिए , क्योंकि उनमें वह कफ प्रवृति होती है , स्त्री को भी पुरुष से अधिक विश्राम करना चाहिए
◆ जो सूर्य निकलने के बाद उठते हैं , उन्हें पेट की भयंकर बीमारियां होती है , क्योंकि बड़ी आँत मल को चूसने लगती है ।

◆ बिना शरीर की गंदगी निकाले स्वास्थ्य शरीर की कल्पना निरर्थक है , मल-मूत्र से 5% , कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ने से 22 %, तथा पसीना निकलने लगभग 70 % शरीर से विजातीय तत्व निकलते हैं ।

◆ चिंता , क्रोध , ईर्ष्या करने से गलत हार्मोन्स का निर्माण होता है जिससे कब्ज , बबासीर , अजीर्ण , अपच , रक्तचाप , थायरायड की समस्या उतपन्न होती है ।

◆ गर्मियों में बेल , गुलकंद , तरबूजा , खरबूजा व सर्दियों में सफ़ेद मूसली , सोंठ का प्रयोग करें ।
◆ प्रसव के बाद माँ का पीला दूध बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता को 10 गुना बढ़ा देता है ।
◆ दुनिया में कोई चीज व्यर्थ नहीं , हमें उपयोग करना आना चाहिए।

◆ जो अपने दुखों को दूर करके दूसरों के भी दुःखों को दूर करता है , वही मोक्ष का अधिकारी है ।
◆ सोने से आधे घंटे पूर्व जल का सेवन करने से वायु नियंत्रित होती है , लकवा , हार्ट-अटैक का खतरा कम होता है ।
◆ स्नान से पूर्व और भोजन के बाद पेशाब जाने से रक्तचाप नियंत्रित होता है।
◆ तेज धूप में चलने के बाद , शारीरिक श्रम करने के बाद , शौच से आने के तुरंत बाद जल का सेवन निषिद्ध है
◆ त्रिफला अमृत है जिससे वात, पित्त , कफ तीनो शांत होते हैं । इसके अतिरिक्त भोजन के बाद पान व चूना ।

◆ इस विश्व की सबसे मँहगी दवा लार है , जो प्रकृति ने तुम्हें अनमोल दी है ,इसे ना थूके।

रविवार, 22 जनवरी 2023

🌳 कहानी:- परछाई 🌳

एक रानी नहाकर अपने महल की छत पर बाल सुखाने के लिए गई। उसके गले में एक हीरों का हार था, जिसे उतार कर वहीं आले पर रख दिया और बाल संवारने लगी। 

इतने में एक कौवा आया। उसने देखा कि कोई चमकीली चीज है, तो उसे लेकर उड़ गया। एक पेड़ पर बैठ कर उसे खाने की कोशिश की, पर खा न सका। कठोर हीरों पर मारते-मारते चोंच दुखने लगी। अंतत: हार को उसी पेड़ पर लटकता छोड़ कर वह उड़ गया।

जब रानी के बाल सूख गए तो उसका ध्यान अपने हार पर गया, पर वह तो वहां था ही नहीं। इधर-उधर ढूंढा, परन्तु हार गायब। रोती-धोती वह राजा के पास पहुंची, बोली कि हार चोरी हो गई है, उसका पता लगाइए।
राजा ने कहा, चिंता क्यों करती हो, दूसरा बनवा देंगे। लेकिन रानी मानी नहीं, उसे उसी हार की रट थी। कहने लगी,नहीं मुझे तो वही हार चाहिए। अब सब ढूंढने लगे, पर किसी को हार मिले ही नहीं।

राजा ने कोतवाल को कहा, मुझ को वह गायब हुआ हार लाकर दो। कोतवाल बड़ा परेशान, कहां मिलेगा? सिपाही, प्रजा, कोतवाल- सब खोजने में लग गए।

राजा ने ऐलान किया, जो कोई हार लाकर मुझे देगा, उसको मैं आधा राज्य पुरस्कार में दे दूंगा। 

अब तो होड़ लग गई प्रजा में। सभी लोग हार ढूंढने लगे आधा राज्य पाने के लालच में।  
ढूंढते-ढूंढते अचानक वह हार किसी को एक गंदे नाले में दिखा। हार तो दिखाई दे रहा था, पर उसमें से बदबू आ रही थी। पानी काला था। परन्तु एक सिपाही कूदा।इधर-उधर बहुत हाथ मारा, पर कुछ नहीं मिला। पता नहीं कहां गायब हो गया। फिर कोतवाल ने देखा, तो वह भी कूद गया। दो को कूदते देखा तो कुछ उत्साही प्रजाजन भी कूद गए। फिर
मंत्री कूदा। तो इस तरह उस नाले में भीड़ लग गई।

लोग आते रहे और अपने कपडे़ निकाल-निकाल कर कूदते रहे। लेकिन हार मिला किसी को नहीं- कोई भी कूदता,तो वह गायब हो जाता। जब कुछ नहीं मिलता, तो वह निकल कर दूसरी तरफ खड़ा हो जाता। सारे 
शरीर पर बदबूदार गंदगी, भीगे हुए खडे़ हैं।

दूसरी ओर दूसरा तमाशा, बडे़-बडे़ जाने-माने ज्ञानी, मंत्री सब में होड़ लगी है, मैं जाऊंगा पहले, नहीं मैं तेरा सुपीरियर हूं, मैं जाऊंगा पहले हार लाने के लिए।

इतने में राजा को खबर लगी। उसने सोचा, क्यों न मैं ही कूद जाऊं उसमें? आधे राज्य से हाथ तो नहीं धोना पडे़गा। तो राजा भी कूद गया।

इतने में एक संत गुजरे उधर से। उन्होंने देखा तो हंसनेलगे, यह क्या तमाशा है? राजा, प्रजा,मंत्री, सिपाही -सब कीचड़ मे लथपथ,
क्यों कूद रहे हो इसमें?

लोगों ने कहा, महाराज! बात यह है कि रानी का हार चोरी हो गई है। वहां नाले में दिखाई दे रहा है। लेकिन जैसे ही लोग कूदते हैं तो वह गायब हो जाता है। किसी के हाथ नहीं आता।

संत हंसने लगे, भाई! किसी ने ऊपर भी
देखा? ऊपर देखो, वह टहनी पर लटका हुआ है। नीचे जो तुम देख रहे हो, वह तो उसकी परछाई है।

इस कहानी का क्या मतलब हुआ? 

जिस चीज की हम को जरूरत है, जिस परमात्मा को हम पाना चाहते हैं, जिसके लिए हमारा हृदय व्याकुल होता है -वह सुख शांति और आनन्द रूपी हार क्षणिक सुखों के रूप में परछाई की तरह दिखाई देता है और 
यह महसूस होता है कि इस को हम पूरा कर लेंगे। अगर हमारी यह इच्छा पूरी हो जाएगी तो हमें शांति मिल जाएगी, हम सुखी हो जाएंगे। परन्तु जब हम उसमें कूदते हैं, तो वह सुख और शांति प्राप्त नहीं हो पाती।

इसलिए सभी संत-महात्मा हमें यही संदेश देते हैं कि वह शांति, सुख और आनन्द रूपी हीरों का हार, जिसे हम संसार में परछाई की तरह पाने की कोशिश कर रहे हैं, वह हमारे अंदर ही मिलेगा, बाहर नहीं।

🍁 धन्ना जाट- भक्तमाल कथा 🍁

एक गांव में भागवत कथा का आयोजन किया गया, पंडित जी भागवत कथा सुनाने आए। पूरे सप्ताह कथा वाचन चला। पूर्णाहुति पर दान दक्षिणा की सामग्री इक्ट्ठा कर घोडे पर बैठकर पंडित जी रवाना होने लगे। उसी गांव में एक सीधा-साधा निर्धन किसान भी रहता था जिसका नाम था धन्ना जाट। 

धन्ना जाट ने उनके पांव पकड लिए। वह बोला- "पंडित जी महाराज ! आपने कहा था, कि जो ठाकुर जी की सेवा करता है उसका बेडा पार हो जाता है। आप तो जा रहे है। 

मेरे पास न तो ठाकुर जी हैं, न ही मैं उनकी सेवा पूजा की विधि जानता हूँ। इसलिए आप मुझे ठाकुर जी देकर पधारें।" पंडित जी ने कहा- "चौधरी ! तुम्हीं ले आना।" धन्ना जाट ने कहा - "मैंने तो कभी ठाकुर जी देखे नहीं, लाऊंगा कैसे ?"

    पंडित जी को घर जाने की जल्दी थी। उन्होंने पिण्ड छुडाने को अपना भंग घोटने का सिलबट्टा उसे दिया और बोले- "ये ठाकुर जी हैं ! इनकी सेवा पूजा करना।' धन्ना जाट ने कहा - "महाराज ! में सेवा पूजा की विधि भी नहीं जानता, आप ही बताएं ?

 पंडित जी ने कहा - "पहले स्वयं नहाना फिर ठाकुरजी को नहलाना। इन्हें भोग चढाकर तत्पष्चात प्रशाद ग्रहण करना।" इतना कहकर पंडित जी ने घोडे को एड़ी लगाई व चल दिए।
     
   धन्ना सीधा एवं सरल व्यक्ति था। पंडित जी के कहे अनुसार सिलबट्टे को बतौर ठाकुरजी अपने घर में स्थापित कर दिया। दूसरे दिन स्वयं स्नान कर सिलबट्टे रूप ठाकुर जी को नहलाया। विधवा मां का बेटा था। 

खेती भी ज्यादा नहीं थी। इसलिए भोग में अपने हिस्से का बाजरी का टिक्कड एवं मिर्च की चटनी रख दी। ठाकुरजी से धन्ना ने कहा, पहले आप भोग लगाओ फिर मैं खाऊंगा। जब ठाकुरजी ने भोग नहीं लगाया तो बोला- पंडित जी तो धनवान थे। खीर-पूडी एवं मोहन भोग लगाते थे। मैं तो निर्धन जाट का बेटा हूं, इसलिए मेरी रोटी-चटनी का भोग आप कैसे लगाएंगे ? पर स्पष्ट सुन लो मेरे पास तो यही भोग है।

 खीर-पूडी मेरे बस की नहीं है। ठाकुरजी ने भोग नहीं लगाया तो धन्ना भी सारा दिन भूखा रहा। इसी तरह वह रोज एक बाजरे का ताजा टिक्कड एवं मिर्च की चटनी रख देता एवं भोग लगाने की प्रार्थना करता। ठाकुरजी तो पसीज ही नहीं रहे थे। यह क्रम निरन्तर छह दिन तक चलता रहा। 

छठे दिन धन्ना बोला-ठाकुर जी, चटनी रोटी खाते क्यों नहीं शर्माते हो ? आप कहो तो मैं आंखें मूंद लूँ फिर खा लो। ठाकुरजी ने फिर भी भोग नहीं लगाया। धन्ना भी भूखा-प्यासा था। 

सातवें दिन धन्ना जट बुद्धि पर उतर आया। फूट-फूट कर रोने लगा एवं कहने लगा कि, सुना था आप दीन-दयालु हो, पर आप भी निर्धन की कहां सुनते हो, मेरा रखा यह टिककड एवं चटनी आकर नहीं खाते हो तो मत खाओ। 

अब मुझे भी नहीं जीना है, इतना कह उसने सिलबट्टा उठाया और सिर फोडने को तैयार हुआ, अचानक सिलबट्टे से एक प्रकाश पुंज प्रकट हुआ एवं धन्ना का हाथ पकड़ कर कहा - 'देख धन्ना ! मैं तेरी चटनी टिकडा खा रहा हूं।"

     ठाकुरजी बाजरे का टिक्कड एवं मिर्च की चटनी मजे से खा रहे थे। जब आधा टिक्कड खा लिया, तो धन्ना बोला- "क्या ठाकुरजी ! मेरा पूरा टिक्कड खा जाओगे ? मैं भी छह दिन से भूखा प्यासा हूं। आधा टिक्कड तो मेरे लिए भी रखो।" ठाकुरजी ने कहा - "तुम्हारी चटनी रोटी बडी स्वादिष्ट लग रही है तू दूसरी खा लेना।

" धन्ना ने कहा - "प्रभु ! मां मुझे एक ही रोटी देती है। यदि मैं दूसरी लूंगा तो मां भूखी रह जाएगी।" प्रभु ने कहा- 'फिर ज्यादा क्यों नहीं बनाता।" धन्ना ने कहा - "खेत छोटा सा है और मैं अकेला।" ठाकुरजी ने कहा - और खेत जोत ले। धन्ना बोला- "प्रभु ! मेरे पास बैल थोडे ही हैं, मैं तो खुद जुतता हूँ।" ठाकुरजी ने कहा - "नौकर रख ले।" धन्ना ने कहा-"प्रभु ! आप तो मेरी मजाक उडा रहे हो। नौकर रखने की हैसियत हो तो दो वक्त रोटी ही न खा लें हम मां-बेटे। इस पर ठाकुरजी ने कहा - चिन्ता मत कर मैं तेरी सहायता करूँगा।

      कहते है तबसे ठाकुरजी ने धन्ना का साथी बनकर उसकी सहायता करनी शुरू की। धन्ना के साथ खेत में कामकाज कर उसे अच्छी जमीन एवं बैलों की जोडी दिलवा दी। कुछ अर्से बाद घर में गाय भी आ गई। मकान भी पक्का बन गया। 

सवारी के लिए घोडा आ गया। धन्ना एक अच्छा खासा जमींदार बन गया। 
      
      कई साल बाद पंडितजी पुनः धन्ना के गांव भागवत कथा करने आए। धन्ना भी उनके दर्शन को गया। प्रणाम कर बोला- 

     "पंडितजी ! आप जो ठाकुरजी देकर गए थे वे छह दिन तो भूखे प्यासे रहे एवं मुझे भी भूखा प्यासा रखा। सातवें दिन उन्होंने भूख के मारे परेशान होकर मुझ निर्धन की रोटी खा ही ली। उनकी इतनी कृपा है कि खेत में मेरे साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर काम में सहायता करते है। 

अब तो घर में गाय भी है। सात दिन का घी-दूध का ‘सीधा‘ यानी बंदी का घी- दूध मैं ही भेजूंगा।"

         पंडित जी ने सोचा मूर्ख व्यक्ति है। मैं तो भांग घोटने का सिलबट्टा देकर गया था। गांव में पूछने पर लोगों ने बताया कि चमत्कार तो हुआ है। धन्ना अब निर्धन नहीं रहा। जमींदार बन गया है। दूसरे दिन पंडित जी ने धन्ना से कहा- कल कथा सुनने आओ तो अपने साथ अपने उस साथी को ले कर आना जो तुम्हारे साथ खेत में काम करता है। घर आकर धन्ना ने प्रभु से निवेदन किया कि कथा में चलो तो प्रभु ने कहा - "मैं नहीं जाऊंगा तुम जाओ।

" धन्ना बोला - "तब क्या उन पंडितजी को आपसे मिलाने घर ले आऊँ। प्रभु ने कहा - "बिल्कुल नहीं। मैं झूठी कथा कहने वालों से नहीं मिलता।

     जो मुझसे सच्चा प्रेम करता है और जो अपना काम मेरी पूजा समझ करता है मैं उसी के साथ रहता हूं।" सत्य ही कहा गया है:- "भक्त के वश में हैं भगवान्"

शुक्रवार, 20 जनवरी 2023

कैंसर का सबसे सस्ता इलाज खाने का सोडा


वैज्ञानिकों ने ढूंढ निकाला कैंसर का सबसे सस्ता इलाज, 2 रुपए की ये चीज जड़ से खत्म कर सकती है कैंसर

“खानें वाला सोडा ....”

कैंसर के मरीजों के लिए एक बड़ी राहत वाली खबर आई है। दुनियाभर के वैज्ञानिक जिस बीमारी के लिए सालों से इलाज ढूंढ रहे थे उसका आखिरकार तोड़ मिल चुका है।

अब तक दुनिया भर में कैंसर के इलाज के लिए अरबों रुपए पानी की तरह बहा दिए गए हैं, लेकिन कोई भी दवा पूरी तरह से कैंसर को जड़ से खत्म करने में नाकाम साबित हुई है। अब तक बाजार में जो दवाएं मौजूद हैं, वो सिर्फ कैंसर को बढ़ने से रोक देती हैं।

अमेरिका के लडविंग इंस्टीट्यूट फॉर कैंसर रिसर्च में अमेरिकी वैज्ञानिकों के दल ने हाल ही में कुछ नए शोध किए। इस टीम की अगुवाई मशहूर कैंसर वैज्ञानिक और जॉन हॉप्किंग यूनिवर्सिटी के ऑनकोलॉजिस्ट (कैंसर विशेषज्ञ) डॉ. ची वान डैंग ने की। उन्होंने कहा कि हम सालों तक रिसर्च कर चुके हैं और अब तक कैंसर के जो भी इलाज मौजूद हैं वो काफी महंगे हैं। हमने जो शोध किया उसमें चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं। आपके किचन में रखा बेकिंग सोड़ा कैंसर के लिए रामबाण औषधि है।

डॉ. डैंग के मुताबिक, हमने बेकिंग सोडा पर लंबी रिसर्च की और जो परिणाम हमने अब तक सिर्फ सुने थे वो प्रमाणित हो गए। उन्होंने बताया कि यदि कैंसर का मरीज बेकिंग सोडा पानी के साथ मिलाकर पी ले तो कुछ ही दिनों में इसका असर दिखने लगेगा। उन्होंने बताया कि कीमोथेरेपी और महंगी दवाओं से भी तेजी से बेकिंग सोडा ट्यूमर सेल्स को न सिर्फ बढ़ने से रोकता है, बल्कि उसे खत्म भी कर देता है।

डॉ. डैंग ने पूरी जानकारी देते हुए बताया कि हमारे शरीर में हर सेकेंड लाखों सेल्स खत्म होते हैं और नए सेल्स उनकी जगह ले लेते हैं। लेकिन कई बार नए सेल्स के अंदर खून का संचार रुक जाता है और ऐसे ही सेल्स एकसाथ इकट्ठा हो जाते हैं, जो धीरे-धीरे बढ़ता है। इसी को ट्यूमर कहा जाता है। उन्होंने बताया कि हमने ब्रेस्ट और कोलोन कैंसर के ट्यूमर सेल्स पर बेकिंग सोडा के प्रभाव की जांच की और हमने पाया कि बेकिंग सोडा वाला पानी पीने के बाद जिस तेजी से ट्यूमर सेल्स बढ़ रहे तो वो काफी हद तक रुक गए।

उन्होंने बताया, ट्यूमर सेल्स में आक्सिजन पूरी तरह खत्म हो जाती है, तो उसे मेडिकल भाषा में हिपोक्सिया कहते हैं। हिपोक्सिया की वजह से तेजी से उस हिस्से का पीएच लेवल गिरने लगता है और ट्यूमर के ये सेल एसिड बनाने लगते हैं। इस एसिड की वजह से पूरे शरीर में भयंकर दर्द शुरू हो जाता है। अगर इन सेल्स का तुरंत इलाज न किया जाए तो ये कैंसर सेल्स में तब्दील हो जाते हैं। डॉ. डैंग के मुताबिक, बेकिंग सोडा मिला पानी पीने से शरीर का पीएच लेवल भी मेंटेन रहता है और एसिड वाली समस्या न के बराबर होती है। डॉ. डैंग ने बताया कि कई बार कीमोथेरेपी के बावजूद भी ऐसे कैंसर सेल्स शरीर में रह जाते हैं, जो बाद में दोबारा से शरीर में कैंसर सेल्स बनाने लगते हैं। इन्हें T सेल्स कहते हैं। इन टी सेल्स को नाकाम सिर्फ बेकिंग सोडा से ही किया जा सकता है।

डॉ. वॉन डैंग ने कहा कि पहले भी ये बात आप सुन चुके होंगे कि बेकिंग सोडा कैंसर समेत कई बीमारियों का इलाज है। लेकिन अब हम प्रमाणिक तौर पर कह सकते हैं कि कैंसर का सबसे सस्ता और अच्छा इलाज बेकिंग सोडा से मिला पानी है। उन्होंने बताया कि जिन लोगों पर हमने प्रयोग किए उन्हें दो हफ्तों पर पानी में बेकिंग सोडा मिलाकर दिया और सिर्फ 2 हफ्ते में उन लोगों के ट्यूमर सेल्स लगभग खत्म हो गई !

TATA मेमोरियल हॉस्पिटल के डॉ. राजेन्द्र ए. बडवे ने जोर देकर कहा कि यदि हर कोई इस समाचार को प्रसारित करता है, तो निश्चित रूप से समाज की बड़ी सेवा होगी।
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आप सबसे हाथ जोड़कर नम्र निवेदन है कि कृपया इस महत्वपूर्ण सन्देश को सभी को भेजें जिससे सभी लाभान्वित हो।

सोमवार, 9 जनवरी 2023

हंस 🦢 और कौवा🐧

पुराने जमाने में एक शहर में दो ब्राह्मण पुत्र रहते थे, एक गरीब था तो दूसरा अमीर। दोनों पड़ोसी थे। गरीब ब्राह्मण की पत्नी उसे रोज़ ताने देती झगड़ती।

एक दिन ग्यारस के दिन गरीब ब्राह्मण पुत्र झगड़ों से तंग आ जंगल की ओर चल पड़ता है ये सोच कर कि जंगल में शेर या कोई मांसाहारी जीव उसे मार कर खा जायेगा, उस जीव का पेट भर जायेगा और मरने से वो रोज की झिक झिक से मुक्त हो जायेगा।

जंगल में जाते उसे एक गुफ़ा नज़र आती है। वो गुफ़ा की तरफ़ जाता है। गुफ़ा में एक शेर सोया होता है और शेर की नींद में ख़लल न पड़े इसके लिये हंस का पहरा होता है।

हंस ज़ब दूर से ब्राह्मण पुत्र को आता देखता है तो चिंता में पड़ सोचता है...
ये ब्राह्मण आयेगा शेर जगेगा और इसे मार कर खा जायेगा...

ग्यारस के दिन मुझे पाप लगेगा इसे बचायें कैसे?
उसे उपाय सुझता है और वो शेर के भाग्य की तारीफ़ करते कहता है। ओ जंगल के राजा... उठो, जागो आज आपके भाग्य खुले हैं, ग्यारस के दिन खुद विप्रदेव आपके घर पधारे हैं, जल्दी उठें और इन्हें दक्षिणा दें रवाना करें. आपका मोक्ष हो जायेगा...

ये दिन दुबारा आपकी जिंदगी में शायद ही आये, आपको पशु योनी से छुटकारा मिल जायेगा।

शेर दहाड़ कर उठता है, हंस की बात उसे अच्छी लगती है और पूर्व में शिकार हुए मनुष्यों के गहने थे, वे सब के सब उस ब्राह्मण के पैरों में रख, शीश नवाता है, जीभ से उनके पैर चाटता है।

हंस ब्राह्मण को इशारा करता है, विप्रदेव ये सब गहने उठाओ और जितना जल्द हो सके वापस अपने घर जाओ...
ये सिंह है, कब मन बदल जाय!
ब्राह्मण बात समझता है, घर लौट जाता है।

पडौसी अमीर ब्राह्मण की पत्नी को जब ये सब पता चलता है तो वो भी अपने पति को जबरदस्ती अगली ग्यारस को जंगल में उसी शेर की गुफा की ओर भेजती है।

अब शेर का पहेरादार बदल जाता है। नया पहरेदार होता है ""कौवा""

जैसे कौवे की प्रवृति होती है वो वैसा ही सोचता है... बढीया है। ब्राह्मण आया.. शेर को जगाऊं.. शेर की नींद में ख़लल पड़ेगी, शेर गुस्साएगा, ब्राह्मण को मारेगा तो कुछ मेरे भी हाथ लगेगा, मेरा पेट भर जायेगा।

ये सोच वो कांव.. कांव.. कांव.. चिल्लाता है। शेर गुस्सा हो जगता है। दूसरे ब्राह्मण पर उसकी नज़र पड़ती है, उसे हंस की बात याद आ जाती है.. वो समझ जाता है कौवा क्यूं कांव.. कांव कर रहा है।

वो अपने पूर्व में हंस के कहने पर किये गये धर्म को खत्म नहीं करना चाहता.. पर फिर भी नहीं शेर, शेर होता है जंगल का राजा...

वो दहाड़ कर ब्राह्मण को कहता है.. "हंस उड़ सरवर गये और अब काग भये प्रधान... थे तो विप्रा थांरे घरे जाओ... मैं किनाइनी जिजमान

अर्थात् हंस जो अच्छी सोच वाले अच्छी मनोवृत्ति वाले थे उड़ के सरोवर यानि तालाब को चले गये हैं और अब कौवा प्रधान पहरेदार है जो मुझे तुम्हें मारने के लिये उकसा रहा है। मेरी बुद्धि घूमें उससे पहले ही.. हे ब्राह्मण, यहां से चले जाओ.. शेर किसी का जजमान नहीं हुआ है.. वो तो हंस था जिसने मुझ शेर से भी पुण्य करवा दिया।

दूसरा ब्राह्मण सारी बात समझ जाता है और डर के मारे तुरंत प्राण बचाकर अपने घर की ओर भाग जाता है...


शिक्षा:-

जो किसी का दु:ख देख दु:खी होता है और उसका भला सोचता है... वो हंस है और जो किसी को दु:खी देखना चाहता है, किसी का सुख जिसे सहन नहीं होता... वो कौवा है।

जो आपस में मिलजुल, भाईचारे से रहना चाहते हैं, वे हंस प्रवृत्ति के हैं। और जो झगड़े कर एक दूजे को मारने लूटने की प्रवृत्ति रखते हैं, वे कौवे की प्रवृति के हैं।

बुधवार, 28 दिसंबर 2022

ब्रह्म मुहूर्त में उठने की परंपरा क्यों…!?

ब्रह्म मुहूर्त:-
रात्रि के अंतिम प्रहर को ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं। हमारे ऋषि मुनियों ने इस मुहूर्त का विशेष महत्व बताया है। उनके अनुसार यह समय निद्रा त्याग के लिए सर्वोत्तम है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने से सौंदर्य, बल, विद्या, बुद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। सूर्योदय से चार घड़ी (लगभग डेढ़ घण्टे) पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में ही जग जाना चाहिये। इस समय सोना शास्त्र निषिद्ध है।


ब्रह्म का मतलब परम तत्व या परमात्मा। मुहूर्त यानी अनुकूल समय। रात्रि का अंतिम प्रहर अर्थात प्रात: ०४ से ०५.३० बजे का समय ब्रह्म मुहूर्त कहा गया है।


“ब्रह्ममुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी”।
(ब्रह्ममुहूर्त की निद्रा पुण्य का नाश करने वाली होती है।)



सिख धर्म में इस समय के लिए बेहद सुन्दर नाम है:-"अमृत वेला", जिसके द्वारा इस समय का महत्व स्वयं ही साबित हो जाता है। ईश्वर भक्ति के लिए यह महत्व स्वयं ही साबित हो जाता है। ईवर भक्ति के लिए यह सर्वश्रेष्ठ समय है। इस समय उठने से मनुष्य को सौंदर्य, लक्ष्मी, बुद्धि, स्वास्थ्य आदि की प्राप्ति होती है। उसका मन शांत और तन पवित्र होता है।


ब्रह्म मुहूर्त में उठना हमारे जीवन के लिए बहुत लाभकारी है। इससे हमारा शरीर स्वस्थ होता है और दिनभर स्फूर्ति बनी रहती है। स्वस्थ रहने और सफल होने का यह ऐसा फार्मूला है जिसमें खर्च कुछ नहीं होता। केवल आलस्य छोड़ने की जरूरत है।



पौराणिक महत्व :-
वाल्मीकि रामायण के मुताबिक माता सीता को ढूंढते हुए श्रीहनुमान ब्रह्ममुहूर्त में ही अशोक वाटिका पहुंचे। जहां उन्होंने वेद व यज्ञ के ज्ञाताओं के मंत्र उच्चारण की आवाज सुनी।



शास्त्रों में भी इसका उल्लेख है-

वर्णं कीर्तिं मतिं लक्ष्मीं स्वास्थ्यमायुश्च विदन्ति।
ब्राह्मे मुहूर्ते संजाग्रच्छि वा पंकज यथा॥

अर्थात:- ब्रह्म मुहूर्त में उठने से व्यक्ति को सुंदरता, लक्ष्मी, बुद्धि, स्वास्थ्य, आयु आदि की प्राप्ति होती है। ऐसा करने से शरीर कमल की तरह सुंदर हो जाता हे।



ब्रह्म मुहूर्त और प्रकृति :-
ब्रह्म मुहूर्त और प्रकृति का गहरा नाता है। इस समय में पशु-पक्षी जाग जाते हैं। उनका मधुर कलरव शुरू हो जाता है। कमल का फूल भी खिल उठता है। मुर्गे बांग देने लगते हैं। एक तरह से प्रकृति भी ब्रह्म मुहूर्त में चैतन्य हो जाती है। यह प्रतीक है उठने, जागने का। प्रकृति हमें संदेश देती है ब्रह्म मुहूर्त में उठने के लिए।



इसलिए मिलती है सफलता व समृद्धि :-
आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में उठकर टहलने से शरीर में संजीवनी शक्ति का संचार होता है। यही कारण है कि इस समय बहने वाली वायु को अमृततुल्य कहा गया है। इसके अलावा यह समय अध्ययन के लिए भी सर्वोत्तम बताया गया है क्योंकि रात को आराम करने के बाद सुबह जब हम उठते हैं तो शरीर तथा मस्तिष्क में भी स्फूर्ति व ताजगी बनी रहती है। प्रमुख मंदिरों के पट भी ब्रह्म मुहूर्त में खोल दिए जाते हैं तथा भगवान का श्रृंगार व पूजन भी ब्रह्म मुहूर्त में किए जाने का विधान है।


ब्रह्ममुहूर्त के धार्मिक, पौराणिक व व्यावहारिक पहलुओं और लाभ को जानकर हर रोज इस शुभ घड़ी में जागना शुरू करें तो बेहतर नतीजे मिलेंगे।


ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाला व्यक्ति सफल, सुखी और समृद्ध होता है, क्यों? क्योंकि जल्दी उठने से दिनभर के कार्यों और योजनाओं को बनाने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। इसलिए न केवल जीवन सफल होता है। शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने वाला हर व्यक्ति सुखी और समृद्ध हो सकता है। कारण वह जो काम करता है उसमें उसकी प्रगति होती है। विद्यार्थी परीक्षा में सफल रहता है। जॉब (नौकरी) करने वाले से बॉस खुश रहता है। 


बिजनेसमैन अच्छी कमाई कर सकता है। बीमार आदमी की आय तो प्रभावित होती ही है, उल्टे खर्च बढऩे लगता है। सफलता उसी के कदम चूमती है जो समय का सदुपयोग करे और स्वस्थ रहे। अत: स्वस्थ और सफल रहना है तो ब्रह्म मुहूर्त में उठें।


वेदों में भी ब्रह्म मुहूर्त में उठने का महत्व और उससे होने वाले लाभ का उल्लेख किया गया है।

प्रातारत्नं प्रातरिष्वा दधाति तं चिकित्वा प्रतिगृह्यनिधत्तो।
तेन प्रजां वर्धयमान आयू रायस्पोषेण सचेत सुवीर:॥ :- ऋग्वेद


अर्थात:- सुबह सूर्य उदय होने से पहले उठने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। इसीलिए बुद्धिमान लोग इस समय को व्यर्थ नहीं गंवाते। सुबह जल्दी उठने वाला व्यक्ति स्वस्थ, सुखी, ताकतवाला और दीर्घायु होता है।



यद्य सूर उदितोऽनागा मित्रोऽर्यमा। सुवाति सविता भग:॥ :- सामदेव

अर्थात:- व्यक्ति को सुबह सूर्योदय से पहले शौच व स्नान कर लेना चाहिए। इसके बाद भगवान की पूजा-अर्चना करना चाहिए। इस समय की शुद्ध व निर्मल हवा से स्वास्थ्य और संपत्ति की वृद्धि होती है।



उद्यन्त्सूर्यं इव सुप्तानां द्विषतां वर्च आदद

अर्थात:- सूरज उगने के बाद भी जो नहीं उठते या जागते उनका तेज खत्म हो जाता है।



व्यावहारिक महत्व:-
व्यावहारिक रूप से अच्छी सेहत, ताजगी और ऊर्जा पाने के लिए ब्रह्ममुहूर्त बेहतर समय है। क्योंकि रात की नींद के बाद पिछले दिन की शारीरिक और मानसिक थकान उतर जाने पर दिमाग शांत और स्थिर रहता है। वातावरण और हवा भी स्वच्छ होती है। ऐसे में देव उपासना, ध्यान, योग, पूजा तन, मन और बुद्धि को पुष्ट करते हैं।



जैविक घड़ी पर आधारित शरीर की दिनचर्या:-
प्रातः ०३ से ०५ – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से फेफड़ों में होती है। थोड़ा गुनगुना पानी पीकर खुली हवा में घूमना एवं प्राणायाम करना । इस समय दीर्घ श्वसन करने से फेफड़ों की कार्यक्षमता खूब विकसित होती है। उन्हें शुद्ध वायु (आक्सीजन) और ऋण आयन विपुल मात्रा में मिलने से शरीर स्वस्थ व स्फूर्तिमान होता है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाले लोग बुद्धिमान व उत्साही होते है, और सोते रहने वालों का जीवन निस्तेज हो जाता है ।

नारायण! नारायण!! नारायण!!! 🙏🏻