महर्षि वेदव्यास जी जिन्हे भगवान का अवतार भी माना जाता है। उनके मुख से निकली हुई वाणी को भगवान गणेश ने कुरानों में भी लिखा है। इस कंद कुरान के अनुसार व्यास जी कहते है जिस घर में पतिवर्ता इस्त्री होती है उनका जीवन सफल हो जाता है। पति की आयु बढ़े इसलिए वह कभी पति के नाम का उचारण नहीं करती। पति के भोजन कर लेने के बाद वह भोजन करती है।
पति के सोने पर स्वंय सोती है और पहले ही जाग जाती है पति अगर दूसरे देश में हो तो वह अपने शरीर का श्रृंगान नहीं करती। वह अपने दरवाजें पर उठती या बैठती नहीं। जो वस्तु देने योग्य नहीं वह किसी को नहीं देती। पति की आज्ञा के बिना वह किसी तीर्थ यात्रा या विवाह उत्सव देखने नहीं जाती। भली भाति स्नान करके सबसे पहले पति के ही मुख का दर्शन करे। कभी अकेली न रहे और निर्वस्त्र होकर न नहाए।
स्त्रियों के लिए ये ही धर्म है कि पति की आज्ञा का उल्लंघन न करना। उसके लिए शंकर और विषणु भगवान से भी बढ़कर उसका पति है। जो पति का आज्ञा का उल्लघन करके त्योहार आदि करती है वह पति की आयु हर लेती है। जो स्त्री दूसरे पुरूषों को कटाक्ष से देखती है एंछी आंख वाली हो जाती है।
जो पति की आंख बचाकर किसी दूसरे पुरूष को निहारती है वह है काणी वृक्र्त मुख वाली। पति ही देवता, पति ही गुरू और पति ही सबकुछ है। स्त्री सब कुछ छोड़ कर एक मात्र पति की पूजा करे। पतिवर्ता स्त्री को देखकर यमदूत भी भाग जाते है।
संसार में वे माता पिता धन्य है जिस घर में पति वृता स्त्री होती है। केवल स्त्री के पतिवृत होने से इसकी पीड़िया स्वर्गलोक भोगती है। दुराचारी स्त्रियां अपने तीनों कुलों को नर्क में गिराती है। और स्वय भी इसलोक में दुख भोगती है। पतिवृता का चरण जहां जहां भी धरती का शपर्श करता है वह धन्य हो जाता है। जिस तरह गंगा में नहाने से शरीर पवित्र होता है उसी तरह पतिवृता का दर्शन करने से संपुर्ण ग्रह पवित्र हो जाता है।